भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सुनता-देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों की
उन्मुक्त कहानी ! 
दिल में
मौन का पत्थर
इस लिए था
दिल बहुत भारी ।भारी।
आँखों में थीं
रात-रात भर
लाल आँखो से
श्वेत-खारा पानी ।पानी।
हर रात
उमड़-घुमड़ दिल
जम कर कभी
क्यों नहीं होती बारिश !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,132
edits