भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूर्वदशा / प्रेमघन

2,282 bytes added, 21:47, 24 अगस्त 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
कँटवासी बँसवारिन को रकबा जहँ मरकत।
बीच बीच कंटकित वृक्ष जाके बढ़ि लरकत॥८७॥

छाई जिन पैं कुटिल कटीली बेलि अनेकन।
गोलहु गोली भेदि न जाहि जाहि बाहर सन॥८८॥

जाके बाहर अति चौड़ी गहरी लहराती।
खंधक तीन ओर निर्मल जल भरी सुहाती॥८९॥

जा मैं तैरत अरु नहात सौ सौ जन इक संग।
कूदत करत कलोल दिखाय अनेक नये ढंग॥९०॥

बने कोट की भाँति सुरक्षित जाके भीतर।
बैरिन सों लरि बचिबे जोग सुखद गृह दृढ़तर॥९१॥

कटी मार दीवारन मैं हित अस्त्र चलावन।
पुष्ट द्वार मजबूत कपाटन जड़े गजवरन॥९२॥

अंतः पुर अट्टालिकान की उच्च दरीचिन।
बैठि लखत ऋतु शोभा सुमुखि सदा चिलवन बिन॥९३॥

औरन सों लखि जबै को भय नहिं जिनके मन।
रहि नभ चुंबित बँसवारिन की ओट जगत सन॥९४॥

शीतल वात न जात, शीत ऋतु जातैं उत्कट।
लहि जाको आघात गात मुरझात नरम झट॥९५॥

व्यजन करत जो तिनहिं बसन्त मन्द मारुत लै।
निज सहवासी तरु प्रसून सौरभ पराग दै॥९६॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits