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|रचनाकार=सूरदास
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<poem>गोकुल प्रगट भए हरि आइ ।<br>आइ।अमर-उधारन असुर-संहारन, अंतरजामी त्रिभुवन राइ॥
गदगद कंठ, बोलि नहिं आवै, हरषवंत ह्वै नंद बुलाइ।
आवहु कंत,देव परसन भए, पुत्र भयौ, मुख देखौ धाइ॥