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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयदान देथा 'बिज्जी'
|अनुवादक=
|संग्रह=ऊषा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ऊषे!
इतनी तो मेरी भी सुन लो
यौवन की अनुपम लाली पर
होकर उत्तेजित कामी दिनकर
किरणों को लेकर सैन्य-समूह
आ रहा तुम्हारे नव-अक्षत
यौवन को खोने!
स्वर्ण-श्रृंखला में कसकर
से सैनिक निष्ठुर
ले जाएँगे तुमको
अपने स्वामी के सम्मुख
लखकर उसकी भीषण कामानल
झुलस जाएगा
यह नूतन किसलय-सा
कोमल गात तुम्हारा
फिर सहन करोगी कैसे
उसका आलिंगन?
प्रतिक्षण पल-पल समय बीत रहा
लो आओ...!
रवि आने से पहिले
तुम मुझ में....
मैं तुम में मिल जाऊँ!
बोलो-बोलो री बाला
अपने अरुणिम अधरों से
कुछ तो नीरव स्वर में बोलो!
ऊषे!
इतनी तो मेरी भी सुन लो!
आओ रवि आने से पहिले
तुम मुझ में...
मैं तुम में मिल जाऊँ!
</poem>
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|संग्रह=ऊषा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
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<poem>
ऊषे!
इतनी तो मेरी भी सुन लो
यौवन की अनुपम लाली पर
होकर उत्तेजित कामी दिनकर
किरणों को लेकर सैन्य-समूह
आ रहा तुम्हारे नव-अक्षत
यौवन को खोने!
स्वर्ण-श्रृंखला में कसकर
से सैनिक निष्ठुर
ले जाएँगे तुमको
अपने स्वामी के सम्मुख
लखकर उसकी भीषण कामानल
झुलस जाएगा
यह नूतन किसलय-सा
कोमल गात तुम्हारा
फिर सहन करोगी कैसे
उसका आलिंगन?
प्रतिक्षण पल-पल समय बीत रहा
लो आओ...!
रवि आने से पहिले
तुम मुझ में....
मैं तुम में मिल जाऊँ!
बोलो-बोलो री बाला
अपने अरुणिम अधरों से
कुछ तो नीरव स्वर में बोलो!
ऊषे!
इतनी तो मेरी भी सुन लो!
आओ रवि आने से पहिले
तुम मुझ में...
मैं तुम में मिल जाऊँ!
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