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डॉ. पालेश्वर शर्मा का जन्म 1928 में जांजगीर में हुआ था। वे महाविद्यालय में अध्यापक थे। छत्तीसगढ़ी गद्य और पद्य दोनों में उनका समान अधिकार है। उन्होंने 'छत्तीसगढ़ के कृषक जीवन की शब्दावली' पर पी.एच.डी. की। प्रकाशित कृतियाँ - 1 ) प्रबंध पाटल 2 ) सुसक मन कुररी सुरताले 3 ) तिरिया जनम झनि देय (छत्तीसगढ़ी कहानियाँ) 4 ) छत्तीसगढ़ का इतिहास एवं परंपरा 5 ) नमस्तेऽस्तु महामाये 6 ) छत्तीसगढ़ के तीज त्योहार 7 ) सुरुज साखी है (छत्तीसगढ़ी कथाएँ) 8 ) छत्तीसगढ़ परिदर्शन 9 ) सासों की दस्तक - इसके अलावा पचास निबंध और 100 कहानियाँ। सुशील यदु अपनी पुरस्तक 'लोकरंग भाग - 2 - छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार' में उनसे छत्तीसगढ़ी साहित्य के भविष्य के बारे में जब पूछते हैं, तो वे कहते हैं - 'कन्हिया कस के - संघर्ष करा खून-पसीना एक करे बर परही त छत्तीसगढ़ी जनभाषा बन पाही। छत्तीसगढिया मन अनदेखना हे तेकर सेती छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास नई होत हे। हिन्दी ले अलग छत्तीसगढ़ी - साहित्य म बने ऊंचा पोथी - सब विधा में लिखे ल परही।' डॉ. पालेश्वर शर्मा ने 'छत्तीसगढ़ी शब्द कोश' की रचना की है। उनका कहना है - 'गावं की आत्मा, उसकी संस्कृति एक ऐसी शकुंतला है, जो ॠषि कन्या है, फिर भी शापित है। किसी की उपक्षिता है।'
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डॉ. पालेश्वर शर्मा का जन्म 1928 में जांजगीर में हुआ था। वे महाविद्यालय में अध्यापक थे। छत्तीसगढ़ी गद्य और पद्य दोनों में उनका समान अधिकार है। उन्होंने 'छत्तीसगढ़ के कृषक जीवन की शब्दावली' पर पी.एच.डी. की। प्रकाशित कृतियाँ - 1 ) प्रबंध पाटल 2 ) सुसक मन कुररी सुरताले 3 ) तिरिया जनम झनि देय (छत्तीसगढ़ी कहानियाँ) 4 ) छत्तीसगढ़ का इतिहास एवं परंपरा 5 ) नमस्तेऽस्तु महामाये 6 ) छत्तीसगढ़ के तीज त्योहार 7 ) सुरुज साखी है (छत्तीसगढ़ी कथाएँ) 8 ) छत्तीसगढ़ परिदर्शन 9 ) सासों की दस्तक - इसके अलावा पचास निबंध और 100 कहानियाँ। सुशील यदु अपनी पुरस्तक 'लोकरंग भाग - 2 - छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार' में उनसे छत्तीसगढ़ी साहित्य के भविष्य के बारे में जब पूछते हैं, तो वे कहते हैं - 'कन्हिया कस के - संघर्ष करा खून-पसीना एक करे बर परही त छत्तीसगढ़ी जनभाषा बन पाही। छत्तीसगढिया मन अनदेखना हे तेकर सेती छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास नई होत हे। हिन्दी ले अलग छत्तीसगढ़ी - साहित्य म बने ऊंचा पोथी - सब विधा में लिखे ल परही।' डॉ. पालेश्वर शर्मा ने 'छत्तीसगढ़ी शब्द कोश' की रचना की है। उनका कहना है - 'गावं की आत्मा, उसकी संस्कृति एक ऐसी शकुंतला है, जो ॠषि कन्या है, फिर भी शापित है। किसी की उपक्षिता है।'
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