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|रचनाकार=मुरली चंद्राकर
|संग्रह=
}}
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(सोनहा बिहान में गाया गया)
अपन मरे बिना सरग नै दिखे, चाहे आवे भगवन हो
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
दूध-घीव के नरवा बोहावे
सोनहा चिरैया देश कहावे
दया मया बिना काम न आवे
करम धरम बिन ज्ञान न आवे
तैहा के गोठ ला बैहा लेगे, होय बर परही सुजान हो
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
गाँव सुखी तब देश सुखी हे
बात बात में लोग दुखी हे
कतको कमाथन पुर नई आवे
जांगर थकगे मन दुबरावे
सुख दुःख में मिल उठ बैठन, ले के हमर निशान
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
सबो डहर ले खांव खांव
औ बाहिर भीतर रांव रांव
भाई खून के भाई प्यासा
दिखत हावे हमरे नासा
आतम गीता पाठ पढ़े बिना, मनसे होगे बेईमान
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
</poem>
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(सोनहा बिहान में गाया गया)
अपन मरे बिना सरग नै दिखे, चाहे आवे भगवन हो
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
दूध-घीव के नरवा बोहावे
सोनहा चिरैया देश कहावे
दया मया बिना काम न आवे
करम धरम बिन ज्ञान न आवे
तैहा के गोठ ला बैहा लेगे, होय बर परही सुजान हो
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
गाँव सुखी तब देश सुखी हे
बात बात में लोग दुखी हे
कतको कमाथन पुर नई आवे
जांगर थकगे मन दुबरावे
सुख दुःख में मिल उठ बैठन, ले के हमर निशान
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
सबो डहर ले खांव खांव
औ बाहिर भीतर रांव रांव
भाई खून के भाई प्यासा
दिखत हावे हमरे नासा
आतम गीता पाठ पढ़े बिना, मनसे होगे बेईमान
जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान
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