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काली आही अंजोरी / चेतन भारती

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<poem>
हाँसत गोठिया ली मुम्मत के छाँव में
जिन्गी जिये के अतके आस हे ।

मुस्कात रहय तोर खोर गली,
चल तो अइसन कारज करी
छितका कुरिया सरग बरोबर,
फेर मिल बइठन कदम तरी ।।
जिन्गी के रद्दा म अब्बड़ बिच्छल हे ,
सम्हल के चलना, अतके बात हे । जिन्गी जिये के....

सिसकत खड़े हावे कोन,
गली ह काबर कल्हरत हे।
सांस म धुर्रा के राज हावे,
रस्ता ह काकर बर दंदरत हे ।।
आज नीहि ते काली आही अंजोरी,
ओस के बूंद अस जिये के आस हे ।
जिन्गी जिये के ....

मनखे ह बनाये खींचातान जिन्गी,
मनखे-मनखे बर खखाय जिन्गी।
पोटरी के हिन्मान करत मनखे ,
मानुखपन ले जुआँ म हारत मनखे ।।
गुम सुम झन जिये गाेँव के गली,
आज जिन्गी बचाय के लगे दाँव हे ।
जिन्गी जिये के ...
</poem>
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