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{{KKRachna
|रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया
|संग्रह=
}}
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<poem>
(1)
नवा राज बन के बेरा मे,
भारी गदगदाए रहे महराज
अब कइसे मुंह चोराए कस
रेंगत हस-सुखरा के ताना
मंथिर महराज के करेजा ल
कतरे कस लागथे
सुखरा के का, गोठियाथे,
तहां नंगत बेर ले कुकरा कस
कुड़कुड़ाथे, थपौड़ी मारके पछताथे
नवा राज, नवा सरकार, गांव के तरक्की
बेरोजगार लइका मन ठिकाना लगही
कहिके सेठ ल गांव भर के वोट ल
देवा देहे अच्छा भठा देहे महराज!
नवा राज के फ़ायदा दिख हे
अब गांव के गांव दारू पीयत हें
बनवासी मनके विधायक सेठ
बाढ़ते जात हे वोकर पेट
वोकर लठिंगरा मन दारू के दुकान,
चलाथे, राइस मिल, रोलिंग
कारखाना खुलत हे
लगथे सेठ सौ बछर बर फ़ूलत हे
नवा राज के इही फायदा हर
परगट दिखत हे
हमन ल तो महराज
ए महंगाई हर निछत हे।
(2)
नवा राज के सपना, आंखी म आगे
गांव-गांव के जमीन बेचाथे
कहां-कहां के मनखे आके
उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें
हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस
उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म
रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे
गांव के गौटिया नंदागे,
नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।
</poem>
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|रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया
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}}
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(1)
नवा राज बन के बेरा मे,
भारी गदगदाए रहे महराज
अब कइसे मुंह चोराए कस
रेंगत हस-सुखरा के ताना
मंथिर महराज के करेजा ल
कतरे कस लागथे
सुखरा के का, गोठियाथे,
तहां नंगत बेर ले कुकरा कस
कुड़कुड़ाथे, थपौड़ी मारके पछताथे
नवा राज, नवा सरकार, गांव के तरक्की
बेरोजगार लइका मन ठिकाना लगही
कहिके सेठ ल गांव भर के वोट ल
देवा देहे अच्छा भठा देहे महराज!
नवा राज के फ़ायदा दिख हे
अब गांव के गांव दारू पीयत हें
बनवासी मनके विधायक सेठ
बाढ़ते जात हे वोकर पेट
वोकर लठिंगरा मन दारू के दुकान,
चलाथे, राइस मिल, रोलिंग
कारखाना खुलत हे
लगथे सेठ सौ बछर बर फ़ूलत हे
नवा राज के इही फायदा हर
परगट दिखत हे
हमन ल तो महराज
ए महंगाई हर निछत हे।
(2)
नवा राज के सपना, आंखी म आगे
गांव-गांव के जमीन बेचाथे
कहां-कहां के मनखे आके
उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें
हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस
उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म
रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे
गांव के गौटिया नंदागे,
नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।
</poem>