भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<poem>
नई भावे मोला
सोना चांदी महल अटारी
नई बाचय चोला
धधकत हे छतिया मा आगी
धनी बिना जग लागे सुन्ना रे

घर बन बैरी लागे
गली गाँव कुल्लुप लागे
अन्न पानी जहर भईगे
बोली हंसी जुलुम लागे
अन्न पानी जहर भईगे
बोली हंसी जुलुम लागे
तन मन ह लागत हाबय घुन्ना रे

नई बाचय चोला
धधकत हे छतिया मा आगी
धनी बिना जग लागे सुन्ना रे

माटी के मोल काबर
सोलहों सिंगार लागय
चढ़ती जुवानी मोरो
अंगरा के आंच लागय
चढ़ती जुवानी मोरो
अंगरा के आंच लागय
पीरा होवय छिन छिन नवा जुन्ना रे

नई बाचय चोला
धधकत हे छतिया मा आगी
धनी बिना जग लागे सुन्ना रे

पीरा पिरित भईगे
जरत हे हिडाके काया
काबर बनाये रामा
मया पीरा के माया
काबर बनाये रामा
मया पीरा के माया
अधरे मा जिंदगी भईगे झुलना रे

नई बाचय चोला
धधकत हे छतिया मा आगी
धनी बिना जग लागे सुन्ना रे
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits