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Kavita Kosh से
बीसवीं सदी का आखिऱी दशक राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में कई परिवर्तनों का साक्षी रहा है। कहना न होगा कि रचनाकारों के लिए यह व्यापक चुनौतियों का दौर रहा। अपने विश्वासों को गहराई में पैठकर जांचने-परखने की ज़रूरत थी और आवश्यकतानुसार उसमें रद्दोबदल की पर्याप्त गुंजाइशें रहीं। अभिज्ञात उन लकीर पीटते रहने वाले रचनाकारों में से नहीं हैं, जो तमाम परिवर्तनों से आंखें मूंद कर केवल वह लिखें जो अभ्यासजन्य हो। नयी लड़ाइयों से पुराने ही वैचारिक हथियारों से भिडऩे का प्रमाद उनमें नहीं।
अभिज्ञात ने लगातार यह कोशिश की कि जो कुछ देश-दुनिया में घट रहा है उसे देखें, परखें और अपनी टककी प्रतिक्रियाओं को अपनी रचनाओं में दर्ज होने दें ताकि लेखक होने की जि़म्मेदारी का निर्वाह हो जाये।