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माँ - 3 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
मेरी चम्पा गाय का बछड़ा
पैदा होने के चौथे दिन ही
मर गया
यह घटना मुझे याद है
जिसे मैं गाय यानी
मामूली जानवर समझता था
बेटे की याद में
फूट-फूट कर रोती थी
मेरी माँ जब उसके पास जाती
उसे ढाँढस बँधाती
तो वह बस
टुकुर-टुकुर ताकती
जैसे जीने भर के लिए
घास की देा चार
फुनगियाँ ले लेती
 
और पिताजी
उसका बोझ
हल्का करने के लिए
चमड़े का एक डमी बछड़ा
खड़ा कर देते
बेचारी समझती सब
पर, जैसे पिता जी को
खुश रखने के लिए
बार-बार उसे
चूमती-चाटती
और ममता की
झूठी प्यास बुझाती
 
और फिर सारा दूध निकाल देती
जिसे हम भाई -बहन पीते
उसकी इस सोच के प्रति
मैं आज भी कृतज्ञ हूँ
कि ममता सीमित दायरे में
संकुचित नहीं होती
</poem>
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