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उस लड़की की बेचारगी पर
उतनी कविता नहीं लिखी गयी
जितनी उसके बलात्कार के बाद
चिल्लपौं मची
फसलों के नष्ट होने से लेकर
नहरों में पानी आने तक
उतनी ईमानदार कोशिश नहीं हुई
जितनी राहत के नाम पर
अनुदान बाँटने पर
(हालाँकि ईमानदारी दिखायी खूब जाती है
पर, दिखती कहीं नहीं)
मेरी मजबूरी है कि
एक तरफ से पर्दा उठाता हूँ
तेा दूसरी तरफ स्याह नज़र आता है
और दूसरी तरफ आता हूँ
तो पहला सिरा नदारद मिलता है
यकीन मानिये
इस यात्रा में हम अकेले नहीं
हम अकेले नहीं भुगत रहे
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