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उससे बातें करें पर वो ज़िंदा तो हो
बेवजह ही सही ग़म से रिश्ता तो हो।
हम गले से भी उसको लगा लें मगर
वो हमारी मुसीबत का हिस्सा तो हो।
 
अपनी महफ़िल में तब ज़िक्र छेड़ो मेरा
जब वहाँ कोई दुश्मन हमारा तो हो।
 
हम तो बैठे हैं दिल में तमन्ना लिए
पर, कहीं से तुम्हारा इशारा तो हो।
 
ये समंदर बड़ा है, पर इतना नहीं
पार जाने का दिल में इरादा तो हो।
</poem>
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