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|सारणी=केनोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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ॐ केनेषितं पतति प्रेषितं मनः केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।<br>
केनेषितां वाचमिमां वदन्ति चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति ॥१॥<br><br>
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अति प्रथम प्राण का कौन प्रेरक, कौन जिज्ञासा महे।<br>
वाणी को वाणी दाता की, करे कौन मीमांसा अहे॥ [ १ ] <br><br>
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::श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यद् वाचो ह वाचं स उ प्राणस्य प्राणः ।<br>
::चक्षुषश्चक्षुरतिमुच्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति ॥२॥<br><br>
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::चक्षु इन्द्रियों का चक्षु प्रभु, एक मात्र प्रेरक है वही।<br>
::ऋत ज्ञानी जीवन्मुक्त हो, पुनि जगत में आते नहीं॥ [ २ ] <br><br>
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न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनः ।<br>
न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यात् ॥३॥<br><br>
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अथ पूर्वजों से प्राप्य ज्ञान का सार, ब्रह्म ही नित्य है।<br>
चेतन व जड़ से भिन्न है, एकमेव ब्रह्म ही सत्य है॥ [ ३ ] <br><br>
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::यद्वाचाऽनभ्युदितं येन वागभ्युद्यते ।<br>
::तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥५॥<br><br>
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::यह ब्रह्म तत्त्व तो वाणी से, अतिशय अतीत अतीत है।<br>
::प्रेरक प्रवर्तक वाणी का, ज्ञाता है ब्रह्म, प्रतीति है॥ [ ४ ]<br><br>
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यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम् ।<br>
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥६॥<br><br>
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परब्रह्म शक्ति के अंश से, मन में मनन सामर्थ्य है।<br>
परब्रह्म की मीमांसा को, बुद्धि मन असमर्थ हैं॥ [ ५ ] <br><br>
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::यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूँषि पश्यति ।<br>
::तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥७॥<br><br>
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::परब्रह्म प्रभु तो चक्षु इन्द्रियों से परे अति भव्य है।<br>
::उसकी ही शक्ति अंश से जग दृष्टिगोचर नव्य है॥ [ ६ ] <br><br>
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यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम् ।<br>
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥८॥<br><br>
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श्रुति इन्द्रियों के विषय से, परब्रह्म तो अतिशय परे।<br>
सामर्थ्य इन्द्रियों में कहाँ, सम्पूर्ण जो वर्णन करे॥ [ ७ ] <br><br>
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::यत्प्राणेन न प्राणिति येन प्राणः प्रणीयते ।<br>
::तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥९॥<br><br>
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