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समकालीन परतदार अनुभूतियों के संधनित संजाल में फँसने को अभिशप्त किसी संवेदनशील मानव की मुक्ति की छटपटाहट का आवेगपूर्ण प्रयास ही आज की कविता है । कवि निरन्तर मुक्ति मार्ग की तलाश करता है। इस गत्यात्मक स्थिरीकरण के पश्चात ही वह घोषित कर सकता है कि -‘ यह ‘यह भी एक रास्ता है’ जो मानवता की मुक्ति का पथ प्रशस्त कर सकता है। डी.एम. मिश्र की समकालीन कविताओं का यह संग्रह -‘ यह ‘यह भी एक रास्ताहै’, इन्हीं अर्थों में प्रासंगिक है ।
प्रस्तुत संग्रह में कविताओं का कैनवास समाज में व्याप्त विसंगतियों, असमानताओं , खीझ,ऊब, घुटन ,संत्रास के तन्तुओं से बुना गया है । है। लेकिन इन मोर्चों पर आक्रमण, नैतिक संवेदना के धारदार शाब्दिक हथियारों से संयमित और मर्यादित ढंग से किया गया है । है। डी.एम. मिश्र की इन कविताओं से होकर गुजरना किसी पहाड़ के शिखर पर चढ़ पाने का ‘ एडवेंचरस’ ‘एडवेंचरस’ गौरवबोध नहीं है बल्कि सागर की लहरों पर सवारी करते हुए अपने साहिल को पाने का संतोष है -‘ जीवन ‘जीवन का प्रवाह / उन्नत पहाड़ में नहीं / दौड़ती लहरों में है /जो गुनगुनाते हुए / टूटती और बनती है ( इसी संग्रह से) यहाँ पर हर ‘ टूटन’ ‘टूटन’ के पीछे ‘ बनने’ ‘बनने’ की आशा लगातार दौड़ती रहती है।
कवि ने परम्पराप्रथित प्रतीकों को नवीन अर्थव्यंजना से स्पन्दित किया है। नई कविता की केन्द्रीय प्रवृत्ति लघुता को महिमामंडित कर, व्यापक मानवता तक एक धनात्मक संदेश पहुँचाकर अपने को उस परम्परा की इकाई के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है। अँधेरे से निरन्तर संधर्ष की अभीप्सा भी तो मुक्ति का एक रास्ता हो सकता है- ‘‘सूर्य ताकत को दिखाकर / डूब जाता है / एक अन्धेरा भी / पीछे छोड़ जाता है / तब यही नन्हा दिया / संकल्प का आलोक बन जाता / जब अंधेरों के खिलाफ / रोशनी की जंग होती है / साथ देते हैं पतंगे भी / तब आग से / कोई नहीं डरता ’’डरता’’ ( इसी संग्रह से)।
स्थापित होते जा रहे एक संभावनाशील कवि के इस संकलन का स्वागत हिन्दी संसार करेगा ही - यह विश्वास है ।