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बिना कपट छल के प्रकृति ला मंय हा टेकत माथा।बुद्धिमान वैज्ञानिक मन हा गावत एकर गाथा।बाढ़ सूखा अउ श्रृष्टि तबाही जन्म मृत्यु मन बाना।बेर चन्द्रमा नभ पृथ्वी अंतरिक्ष सिंधु मन माला।बालक के हक हे दाई संग कर ले लड़ई ढिठाई।बायबियाकुल शक्तिहीन के प्रकृति करय भलाई।बेर करिस बूता बेरा तक, बड़बड़ाइस नइ ठेलहा बैठबद्दी मुड़ पर कहां ले परही, बढ़ा डरिस जब करतब काम।बूता के छिन सिरा गीस अब, ब्यापत दर्द देह भर खूबबढ़ना चहत अपन बासा बल, बेंग परत नइ पर के बीच।बेर गुनिस – “बिलमत बिन बूता, बरपेली होहूं बदनामबढ़ना अब बढ़िया काबर के, बढ़ागे जब करतब सब काम।बरजत हवंव रात अउ दिन ला, बेंवट मन नइ धरिन धियानबुजरुक ला बेंझुवा बिजराथंय, बढ़े चढ़े लइका बइमान।बस नइ चलय बंड के सम्मुख, बिन कारण काबर बिपतांव!बरगलात नइ बनत त बोचकंव, बर पीपर के बिसर नियाव।बनत रात अउ दिन मन वर – वधु, बेंग परय मत खुशी मं गाजबपरा बपरी ब्याह करंय अउ, बासी झड़कंय बांट बिराज।बेर बेर शुभ मुहरुत बेरा, बिया, बलाये मं नइ आयबर्तन बांस बांसुरी बिजना, बचकरी बाजा मिल नइ पाय।बरा बरी बटरा बंगाला, बरके मं बर जहय बिहावबजनी बजना बुधमानी नइ, बुड़बुड़ चुपकर बढ़ंव अबेर।बोरिया बिछना बांध सुरुज घर चलिस चुको के पारी।बाद रात – दिन मन बिहाव कर खुशी मनावत भारी।दिन हा ठोसरा दीस रात ला – “उच्छा कर मंय करेंव बिहावपर ए बात उमंझ नइ आवत, कोन किसम जीवन निर्वाह –मंय ओग्गर गोरिया सुन्दर हंव, लकलक बरत असन तन मोरपर तंय हवस मोर ले उल्टा – कोइला अस करिया तन तोर।अब यदि मंय हा चलत तोर संग, सब झन करिहंय हंसी मजाक-जुग जोड़ी नइ फभत एक कन, उत्तर दक्षिण दिशा समान”पति – एल्हना सुन रात हा बोलिस – “जानत तोर कपट के चालबगुला असन देह मनमोहक, मगर ह्मदय मं रखत मलाल।मंय हा कोइला अस करिया हंव, लेकिन ह्मदय हवय झक साफछलप्रपंच ले रहिथंव दुरिहा, सब ला करथव शीतल शांत।”दिन बोलिस – “तंय समझदार हस, तभो देत हंव नेक सलाहबिन मिहनत मांई असाद अस, मत करना जीवन निर्वाह।सुरुज सियान के राह चलन हम, पीछू डहर पांव झन जायजतका काम भाग मं आवत, पूरा जोंगन रहि के टंच।हमला फुरसद टेम मिलय तंह, दूनों मिलन फजर अउ शामझगरा करके मया करन हम, दुख ला काटन दुख सुख भूल।हम तंय सदा एक संग रहिबो, बढ़िहय घृणा शत्रुता बैरबहुत समय के बाद भेंट तब, बढ़िहय आकर्षण रुचि प्रेम।”रात किहिस – “तंय समझावत हस, दर्जा देवत अपन समानतोर बात ला मंय हा मानत, मंय चलिहंव तोर मति अनुसार।”एकर बाढ़ रात हा सोचिस – प्रथम मिलन के पबरित टेमदिन के साथ करंव मंय ठठ्ठा, ताकि बढ़य ए प्रेम प्रवाह –“अबला के कब चलिस सियानी, चलिहंव सुन पति के आदेशपर तुम “सातो वचन’ निभाहव, तंह नइ ब्यापय विपदा क्लेश।”रातबती हा अंचरा ला धर, परथय अपन मरद के पांवचिरई, पेड़ ला अंखिया बोलिस – “सुघ्घर निपटिस इंकर बिहाव।नाचत भड़त वक्त हा कटगे, हम सोसन भर आनंद पायपर अब इहां निरर्थक बिलमत, इंकर प्रेम मं परिहय आड़।”पेड़ घघोलिस – “का समझाथस, जानत हमूं भेद के बातकोन मुरुख हा बीच मं छेंकत, चटरी, चुट लू – जीव जरात!”बपरी चिरई गपगपागे तंह भागिस खोंधरा कोती।पेड़ कलेचुप होगे तंहने बरत प्रेम के जोती।मिलिन रात अउ दिन बिन बाधा, प्रेम प्यार के कतरा मापदिन हा ओ तिर ले सल्टिस तंह, करिया होय धरिस अतराप।राज करत हे रात सबो तन, अंधनिरंध कुलुप अंधियारपेड़ लगत हें भूत बरोबर, भांय भांय बोलत सब खार।चिंहुर अवाज शांत हे बिल्कुल, सांय सांय हा कंस डर्हुवातबिरबिट करिया हाथ सुझत नइ, रात शक्ति पल पल बढ़ जात।अंधविश्वािसी मन कहि देतिन – भूत प्रेत मन करत निवासभगव इहां ले जीव बचावव, अब नइ दिखत प्राण के आस।नइ अंजोर – सिमसाम सबो दिश, पेड़ पान मन सन गप खायसमय रात ला अधुवन अक लिल, अउ जादा बर मुंहू लमाय।उही बखत खोभा अउ चुम्मन, उही निझाम ठउर मं अैनउंकर पास हे एक नवा शिशु, जउन दिखत हे बरत समान।खोभा कथय – “हवय सन्नाटा, अपन काम ला कर लन पूर्णजे नानुक ला लाय हवन हम, इंहे छोड़ के झप भग जान।”
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