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|पीछे=गरीबा / पहिली पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा
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|सारणी=गरीबा / नूतन प्रसाद शर्मा
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यद्यपि सोनू, परस ला डांटत, मगर परस ला परत नइ घावलगत फकीरा ला बरछा अस, अंदर ह्मदय करत हे हाय।काबर रुकय फकीरा-छोड़त सोनू के दरवाजा।एक घरी नइ रुकना चहिये-जब अपजस अंदाजा।मगर स्वार्थ हा पूर्ण होय या भविष्य मं कुछ आशा।तब अपमान ला सहना चहिये-सुनना चहिये गारी।रुकिस फकीरा ढीठ बने तब, अंकालू हा उंहचे अैसओहर सोनसाय ला बोलिस- “तोर पास मंय हा ऋण लेंव।ओकर मूर ब्याज कतका अस, कहि हिसाब ला एकदम साफमोर कष्ट मं तंय चलाय हस, तब पटाय बर मोरो फर्ज।जउन जमीन रहन राखे हंव, वापिस चहत पटा सब नोटसकले हंव मुश्किल मं रुपिया, कष्ट झेल मर दुख सहि भूख।”सोनू अंतर कंतर जोड़िस, कुटिल हंसी हंस करत हिसाब-“जतका रकम धर के लाने हस, कोन्टा तक बर पुर नइ पात।तोर भूमि तो पहिलिच बुड़गे, भइगे रख-भग जतका लायबचत कर्ज ला छोड़ देत हंव, तोर बुती अब जुड़ नइ पाय।”अपन जमीन उबारे खातिर, रुपिया धर अंकालू आयलेकिन उपक बुड़ा मं बुड़गे, ओकर ह्मदय करत हे हाय।अंकालू हा तुरते गिन दिस, बसनी के रुपिया ला हेरसोनसाय के नाम खेत लिख, ओतिर ला तज दीस अबेर।चलिस फकीरा ओकर पाछू, अंकालू केंघरिस दुख साथ-“अपन जमीन छोड़ाय आय मंय, मगर जमीन पूर्व बुड़ गीस।मोर पास मं रिहिस हे रुपिया, उहू ला हड़पिस सोनसहायमोर दूध अउ दुहना फूटिस, जमों डहर ले लगगे हानि।”कथय फकीरा- “तंय ठंउका हस, वास्तव आज होय बर्बादमगर काम ला नेक करे हस-अपन दिमाग रखे हस शांत।दुखड़ा रोय अदालत दउड़त, खाहंय मांस वकील-दलालपूरा अस धन समय बोहाहय, हरिया भूमि बचत ते नाश।”अंकालू के क्रोध भड़क गे- “बिन कारण जावत हे जानतंय आगी मं घिव डारत हस, ताकि होंव मंय सत्यानाश।चहत हवस-मंय रहंव कलेचुप, सोनवा के झन होय विरोधपर अन्याय के पक्ष लेत हस, कार देत हस गलत सलाह?”कथय फकीरा -”मोर तर्क सुन-हम जनता मन हन असमर्थसोनसाय ला गारी देवन, या छीनन हम ओकर भूमि।पर कल्पना मं सार्थक एहर, पर प्रत्यक्ष असम्भव बातसोनसाय हे पुरे गोसंइया, ओकर कोन हा करे बिगाड़!सोनू ले तंय उबर आय हस, वास्तव होय नेक अस कामखुद ला लाय सुरक्षित हस तंय, एहर आय बड़े उपलब्धि।”फिक्र हटा अंकालू कहिथय -”तोर बात जस करुहा लीमयद्यपि छेद करिस कांटा बन, पर पथ ला देखाय तंय ठीक।”एमन अपन राह ला पकड़िन, सोनू हा मचात हे लूटपर, पर ला घालत हे तेला, जेवत उम्र तेन नइ याद।सोनसाय के बुद्धि हे चंचल, चिंतन करत रथय दिन रात-अपन डहर आकर्षित होये, चलंव कते शतरंज के चाल?सब ग्रामीण ला बला के बोलिस -”मंय हा जोंगे हंव शुभ कामअपन गांव सुन्तापुर मं मंय, चहत बलाय सात विद्वान।पर कठिनाई आत इहिच बस-परत खूब अक खर्च के मारबोझ उठाय तुमन यदि राजू, तुम्हर साथ मंय तक तैयार।”ग्रामीण झड़ी हर्ष कर बोलिस -”कहत तेन अति उत्तम गोठतोर तोलगी सदा धरे हन, तब अब घलो होय नइ घात।जतका व्यय हमला कबूल-पर, भेज निमंत्रण-ज्ञानिक लानगूढ़ गोठअमरे उत्साहित, सरहा तन के हो कल्याण।”किहिस लतेल -”आन हम मेचका, कहूं आन ना कहुं तन जानहोय ज्ञान विज्ञान बात नइ, हम रहिथन सत्संग ले दूर।तंय विद्वान बला ले निश्चय, हम स्वागत बर हन तैयारमात्र तोर पर बोझ आय नइ, सब पर परत खर्च के भार।”एेंच पैंच ले दूर गंवइहा, समझिन नइ सोनू के चालजइसे सिधवी मछरी जाथय-जान गंवाय जउन तन जाल।सब ग्रामीण ला लहुटा सोनू, भोजन कर-कुछ लीस अरामएकर बाद खेत बल जावत, किंजरे असन भरत डग लाम।कुछ ओहिले अउ गिस तब मिलगे, सुद्धू बुता करत खुद खेतसोनू हा एल्हत ओतिर थम -”कार कमावत बिधुन बिचेत!परे डरे बेर्रा लइका बर, फोकट बोहा डरत श्रम बूंदतोर लहू नइ आय गरीबा, तभो सुतत नइ आंखी मूंद?छोड़ गरीबा के सेवा ला, देख अपन भर स्वार्थ अरामओंड़ा आत ले जेवन ला कर, नाक बजा के नींद ला भांज।”सुद्धू चक ले बात ला काटिस -”यदपि गरीबा मम नइ पुत्रओकर पर सदभाव रखत हंव, उहू आय मानव के वंश।पर के तन मं लहू हा दउड़त, चलत गरीबा के तन खूनलेकिन तंय हा भेद करत हस, क्षुद्र विचार करिच दिस दंग।
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