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लउठी उबा घुमैस गरीबा, उदुप घटिस घटना ए बीच-लउठी बिछल परिस सुद्धू ला, कंझा बइठिस आंख ला मूंद।बाद चेत लहुटिस तब भड़कत -”टूरा, तुम मांई बइमानबुजरुक मन के प्रेम ला टोरवा, तुम खेलत बन एक ठन प्राण।मंय लइका के लड़ई मं पर के, ठगा गेंव-बन गेंव नदानमित्र फकीरा ला बक डारेंव, करेंव कुजानिक तेकर लाज।मित्र फकीरा ला बनाय अरि, आंख मिलाय शक्ति तक खत्मजउन कुजानिक आज करे हंव, ओकर सजा मार मंय खाय।”दसरु अउर गरीबा ला धर, लानिस तुरते ताही।बच्चा मन नइ जाना चाहत पर नइ बोलत नाही।बिसरु तिर मं सुद्धू केंघरिस -”का फोरंव मंय अपन बिखेद-टुरा गरीबा खूब निघरघट, करथय पूर्ण अपन भर रेंद।नेक सीख ला बिजरा देथय, वाजिब काम ले भागत दूरएकर कारण मंय घसटाथंव, पुत्र के कारन मयं बदनाम।”सुद्धू मर मर बिपत ला रोवत, ताकि सहानुभूति मिल जायपर बिसरु हा पक्ष लेत नइ, अउ ऊपर डारत हे दोष-“बच्चा छल प्रंपच ले दुरिहा, झगरा कर-फिर बनत मितानइनकर बीच परे तंय काबर, जबकिन तंय हुसनाक सियान।”गोठ लमावत सोच के बिसरु, बात सुहावन फेंकिस जल्द-“मितवा, व्यर्थ फिक्र झन कर तंय, तोर पुत्र के नेक सुभाव।अच्छा, अब हमला जावन दे, गोटकारी मं कटगे आजअपन बुता मं मंय पछुवावत, घर मं पहुंच पुरोहंव काम।”सुद्धू कथय -”तिंहिच खरथरिहा, तोर बिगर अरझे सब कामगांव करेला जाबे कल दिन, आज इहां भर कर विश्राम।जान देंव नइ- रुकना परिहय, तोर गांव हम आबो दौड़अगर पेल तुम रद्दा नापत, हमर तोर मं लड़ई अवश्य।”बिसरु खुलखुल हंस के कहिथय-”ले भई, हम बिलमत ए धाममगर आज का जिनिस खवाबे, फोर भला तो ओकर नाम?”“हमर इहां चांउर पिसान हे, हवय तेल गुड़ शक्कर नूनमिट्ठी-नुनछुर सब बन सकही, जउन विचार पेट भर खाव।सगा जेवाय जिनिस हे छकबक, चुनुन चुनुन हम चिला बनाबमांईपीला बइठ एक संग, स्वाद लगा भर पेट उड़ाब।”कहि सुद्धू हा तुरते घोरिस-एक सइकमा असन पिसानआगी बार तवा रख चूल्हा, डारिस तेल घोराय पिसान।सुद्धू हा चीला बनात हे, पर चीला हा बिगड़त खूबओहर तवा मं चिपके जावत, या फिर जावत पुटपुट टूट।इही बीच मं अैस सुकलिया, ओहर हंसिस हाल ला देखकहिथय -”तंय चीला बनात हस-गदकच्चा अधपके पिसान।एला यदि लइका मन जेहंय, ओमन ला करिहय नुकसानमोला तंय चीला बनान दे, मंय हा चुरो सकत हंव ठीक।”सुद्धू कथय -”कहत हस ठंउका-जेवन रंधई कला ए जानजमों व्यक्ति हा निपुण होय नइ, सर मं सती होत हे एक।खपरा रोटी-गांकर सेंकत, चीला बनई कठिन हे कामतंय हा चीला आज बना दे, सीख जहंव मंय ओला देख।”चीला ला पलटात सुकलिया, सुद्धू बिसरु बात चलातसुम्मत बंधत गरीबा दसरु – चील अस किंजरत चीला-पास।कथय गरीबा -”हमन खेलबो-सगा परोसी उत्तम खेलहमला तो बस चीला चहिये, ओकर बिन नइ आय अनंद।”कथय सुकलिया -”धैर्य रखव कुछ, मंय चीला बनात हंव जल्दएक साथ तुम सब झन बइठव, तंहने जेव लगा के स्वाद।”भुलवारत हे खूब सुकलिया, तुलमुलहा मन नइ थिरथारकेंदरावत तब दंदर जात हे-बड़ खिसियात चिला-रखवार।परे हवय चितखान सुकलिया, ओकर ध्यान तवा तन गीसतिही मध्य दसरु चीला धर, पल्ला भागिस बिगर लगाम।ओकर तोलगी धरिस गरीबा, तुर तुर तुर तुर अति उत्साहपुछी चाब दउड़त हे जइसे-कातिक चल के अघ्घन माह।ओमन दुसरा खंड़ मं पहुंचिन, कथय गरीबा -”तोर मं फूर्तिमंय हा जोंगत रेहेंव बहुत क्षण, पर तंय चीला ला छिन लेस।”दसरु कथय- “आज नइ खावन, कल बर लुका के चुप रख देतजब एको झन तिर नइ रहिहंय, हम तुम दुनों झड़कबो बांट।”ओमन चीला लुका दीन खब, तभे सुकलिया दीस अवाज-“चीला चोर कहां हो तुम्मन, मोर पास झप दउड़त आव।सब चीला मंय बना डरे हंव, तुम्मन पहुंच के जेवन लेवकरहू देर जिनिस ले वंचित, भूख मरत पछताहव खूब।”लइका मन आपुस मं बोलिन- “काबर करन टेम ला नाशअगर बेर- खा लिहीं हुड़म्मा, फिर चुचुवाना परिहय बाद”सुम्मत बांध-बुंधी के आइन, दीस सुकिलया जेवन खायकहिथय- “मंय वापिस जावत हंव, तुम खा लेव बचत ला हेर।बिसरु कथय- “तंहू भोजन कर, तंय चिला बनाय कर यत्नजब तंय हा मिहनत बजाय हस, जिनिस खाय बर तक हक तोर।”
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