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किहिस पुरानिक -“”बुरा मान झन – तंय बतात हस बिल्कुल झूठज्ञानिक ग्रंथ जेन ला बोलिन, उंकर तथ्य पर मारत मूठ।पर तंय हा विद्वान बनस नइ, तंय हमला भरमा झन व्यर्थजउन हा सच ते दिखत हे संउहत, कुष्ठ रोग नइ होय समाप्त।”मंसा अपन तर्क ला रखथय -“”मानव पास शक्ति भण्डारबात असम्भव रहिथय तेला, संभव बर कर देत प्रयास।धन हा सम वितरण नइ होवय, रहिथंय दीन धनी इंसानतीर मं तुक्का लग जावय कहि, करथंय समाजवाद के बात।कुष्ठ रोग हा अजर अमर हे, ओला खतम करत हे कोनमगर रोग हा मिट जाये कहि, मनखे सक भर करत प्रयास।एकर ले नइ होय निराशा, जीवन जियत आस के साथदूध समुद्र होय नइ जग मं, तभो ले ओकर पर विश्वास।”कई ठक तर्क गरीबा रख दिस, तभो वृद्ध मन फांक उड़ैनओंड़ा आत पेट हा भर गिस, हाथ अंचोय बर उदिम जमैन।अन्न के नशा छपाइस तंहने, सोय चहत हें दुनों सियानबोलत हवय गरीबा टुड़बुड़, पर एमन देवत नइ ध्यान।सिरिफ गरीबा करत जागरण, ओकर मन मं चलत विचार-“अब मंय हा मनमरजी करिहंव, भल दुसर बोलंय गद्दार।सब के मान चलत आवत हंव, लेकिन मिलिस मात्र नुकसानओमन चहत गरीबा भागय, बेच के अपने माल मकान।’मनसे जब निराश हो जाथय, या सब डहर ले दुख – बरसातओहर मन मं अनबन सोचत, क्रोध देखात – करत आक्रोश।कतका बखत आंख हा लग गे, कहां गरीबा जानन पैस!ओकर सुते आंख खुलथय जब, शासन सुरूज देव के अै स।लेथय टोह वृद्ध मन कोती, उनकर छैंहा मिल नइ पैसघर ला जांचिस जहां गरीबा, कतको जिनिस नदारत पैस।घर ले निकल गरीबा खोजिस, दूनों वृद्ध ला नंगत दूरलेकिन उंकर मिलिस नइ दउहा, आखिर विवश आत हे लौट।तभे गुरुझंगलू हा मिल गिस, ओहर रख दिस एक सवाल-“”तंय फिफियाय हवस का कारण – करत हवस तंय काकर खोज!मनखे दुख ला कभु बलाय नइ, दुख आ जाथय तब परेशानतोरो कोई जिनिस गंवा गिस, तभे दिखत अड़बड़ परेशान?”कथय गरीबा -“”तंय भांपे हस सोला आना ठौंका।ओकर कतका चर्चा छेड़न इहां रोज दिन घाटा।मगर रात के घटना ला सुन, अैहन हमर घर दू झन वृद्धउनकर नाम पुरानिक मंसा, कुष्ठ रोग के रिहिस मरीज।ओमन अपन विचार ए राखिन – पुरबल जनम होय जे कामओकर फल ए जनम मं पावत, ईश्वर हा देवत हे दण्ड।पर मंय उंकर बात फांके हंव – कुष्ठ रोग हा दैहिक रोगखतम करे बर औषधि बन गिस, मोर वाक्य पर कर विश्वास।पर डोकरा मन अड़बड़ अंड़ियल, कैची अस काटिन सब गोठमंय समझाय करे हंव कोशिश, मगर बोहा गिस जमों प्रयास।”झंगलू हा समझाय बर कहिथय -“”एमां बुजरूक के नइ दोषजे मान्यता पूर्व ले आवत, ओहर तुरूत खतम नइ होय।भूत प्रेत जादू अउ टोना – एमन मात्र काल्पनिक चीजयदि हम इंकर हकीकत कहिबो, हमर बात पर हंसिहंय लोग।बैगा तोला टोनहा कहि दिस, मनखे मन कर लिन विश्वासधन तो दुधे उहां पर पहुंचिस, वरना तंय खाते कंस मार।”“”वाकई मं हम मुंह मं कहिथन – भूत प्रेत बिल्कुल नइ होयखुद ला वैज्ञानिक बताय बर, रखथन एक से एक प्रमाण।लेकिन मन मं स्वीकारत हन – जग मं होथय प्रेतिन प्रेततंत्र मंत्र जादू अउ टोना, इंकर शक्ति के रहत प्रभाव।”एकर बाद गरीबा हेरिस, शुद्ध सोन के चूरा एकओहर झंगलू गुरुला बोलिस -“”मोर बात ला सुन रख ध्यान-मोर ददा हा बचा के राखिस, इहिच सोन के चूरा एककतको कष्ट झपैस हमर पर, ओला नइ बेचिस कर टेक।ददा किहिस के जब मंय मरिहंव, बेच देबे तंय चूरा मोरश्रद्धा संग गत गंगा करबे, तोर उड़ाहय इज्जत – सोर।पर चूरा ला तुमला देवत, ले दव पट्टी कलम किताबओला दीन छात्र ला बांटव, ओमन पढ़ लिख शिक्षित होय।भूल करंव नइ खात खवई ला, कोन जाय अब तीरथ धामअइसी के तइसी मं जावय – जमों खटकरम गंगा धाम।”अतका किहिस गरीबा हा अउ, अपन वचन ला तुरूत निभातझंगलू ला चूरा ला देथय – नगदी दान होत महादान।झंगलू किहिस -“”होत हे अक्सर – मनखे करत घोषणा बीससत्तर ठक आश्वासन देवत, मदद करे बर अस्वीकार।पर तंय लबरा बादर नोहस, जेन बताय करे हस कामदीन छात्र मन मदद ला अमरें, पढ़ लिख के बनिंहय गुणवान।”झंगलू हा चूरा ला रख लिस, एकर बाद छोड़ दिस ठौरअब ओ तन के कथा बतावत, जेतन होत काम हे और।सब अतराप के मनखे मन हा, धनवा घर मं जेवन लेतबपुरा मन हा सदा भुखर्रा, पर अभि पाय सुघर अक नेत।पेट तनत ले झड़किन कोंहकोंह, हिनिन बाद मं धर के रागबोकरा के जिव जाथय लेकिन – खबड़ू कथय अलोना साग।सोचिन के जब सोनसाय हा, पर धन लूट बनिस धनवानहम्मन बढ़िया पांत पाय हन, काबर छोड़न मूर्ख समान!यथा सिन्धु के कुछ पानी ला, झटक के खुश हो जथय अकाशइसने एमन थोरिक उरका, लेवत बपुरा सुख के सांस।मुढ़ीपार के पुसऊ निवासी, बन्दबोड़ रमझू के गांवसुन्तापुर के वृद्ध फकीरा, भण्डारा मं भोजन लीन।
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