भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<poem>
पुसऊ हा दूनों झन ला बोलिस -“”धनवा करिस खर्च कंस आजसब अतराप के नर नारी मन, ओकर घर मं जेवन लीन।धनसहाय ला पुण्य हा मिलही, सबो डहर ले यश जयकारसोनू के आत्मा नइ भटकय, ओहर करिहय स्वर्ग निवास।”रमझू कथय -“”देख झन पर तन, तंय हा बता स्वयं के हालधरमिन के शादी रचेस तब, तंहू करे हस अड़बड़ खर्च।खैन बराती पेट के फूटत, समधी सजन खैन पकवानहम रहि गेन बाट ला जोहत, मिठई कलेवा कुछ नइ पाय।”पुसऊ हा मुसका दीस ठोलना -“”जब धनसाय निमंत्रण दीसतंय भण्डारा मं उड़ाय कंस, मगर अभी तक खाली पेट।ठीक हे भई, अभी बचे निमंत्रण, तंय हा पहुंच गांव मुढ़ीपारतोला उंहचे खूब खवाहंव – करी के लड़ुवा – पप्ची – खीर।”तभे फकीरा प्रश्न फेंक दिस -“” तंय हा बता एक ठन बातछुईखदान गीस धरमिन हा, जेन आय ओकर ससुराल।धरमिन अैगस तोर घर मं कभु, या मइके के भूलिस यादओहर सुखी या कुछ दुख पावत, बता अपन पुत्री के हाल?”किहिस पुसऊ हा मुँह चोंई कर-“” तंय पूछे हस कठिन सवालसाफ व्यथा मंय कहां ले बोलंव, मंय खुद नइ जानत हंव साफ।छुईखदान ले धरमिन आइस, झुखे रिहिस हे ओकर देहजउन हा पहिली हंस हंस चहकय, पर ए बखत बहुत गंभीर।बेटी ला मंय पूछेंव वाजिब -“”धरमिन, तंय कोंदी अस कारतोर स्वास्थय हा घलो गिरे अस, यदि तकलीफ बता सच खोल?”धरमिन किहिस -“”ददा गा तंय सुन, गलत विचार भूल झन सोचमइके के जब याद हा आवय, तब सुरता करके मंय रोंव।”“”कइसे हें तोर सार ससुर मन, हंस बोलिन या करुजबानओमन तोला तपे भुंजे यदि, फोर मोर तिर सत्य बयान?”मंय हा जब पूछेंव धरमिन ला, तब बोलिस थोरिक मुसकात-“”सास ससुर मन देवी देवता, सदा करिन सुख के बरसात।यदि मंय बुता करे बर सोचंव – ओमन छेंकय आगू।अपन सामने मं बइठा के खूब खवांय सोंहारी।“”नोनी, तंय अभि जउन कहत हस, ओकर ले कई शंका होतजब तंय सब प्रकार सुख पावत, एकोकन नइ सहत अभाव।तब काबर करिया लुवाठ अस, कांटा असन सूखगे देहतोला का अजार सपड़े हे, वाजिब बात मोर तिर बोल?”धरमिन बोलिस -“”ददा मोर सुन, शंका के तरिया झन डूबमोला संउपे हस धनपति घर, फेर कहां मिलिहय तकलीफ!मंय जब रेहेंव अपन मइके मं, तब तंय हा भुखमरा गरीबखाये पिये बर कमती होवय, हुकुर हुकुर मंय भोगंव भूख।पर ससुराल अचक पूंजीपति, उहां भराय खाय के चीजमंय हदरही खूब खाए हंव, एक दिवस मं कई कई बार।आखिर मं नुकसान बता दिस, मोला धर लिस अपच अजारएकर कारण सुखा गेंव मंय, समझगे होबे तंय सच बात!”धरमिन हा अतका अस बोलिस, एकर बाद रोय धर लीसओकर बहत छलाछल आंसू , कलकल बहिथय नदी के धार।”रमझू हा अचरज भर पूछिस -“”तंय हा करत बात दू रूपएक डहर धरमिन सुख पावत, पर तन रोवत आंसू ढार।आखिर धरमिन हा सुख पावत, या झेलत हे कष्ट अपारएकर उत्तर साफ बता तंय, ताकि जमों शंका मिट जाय?”पुसऊ किहिस -“”शंका उठात हस – मंय तक अचरज मं पर गेंवधरमिन तिर मंय प्रश्न रखेंव कई, पर ओहर नइ दीस जुवाप।”किहिस फकीरा -“”पुसऊ आज सुन – मंय बतात हंव जग के गोठ-मनसे तिर छोटे दुख होथय, ओहर राज खोलथय चौक।मगर असह्य कष्ट हा आथय, या इज्जत लग जाथय दांवतब मनुष्य सब भेद लुकाथय, साफ कहय नइ ककरो पास।यदि धरमिन नंगत दुख पावत, लुका के रख लेथय सब हालतब तंय वाजिब तथ्य पता कर, अपन हृदय के शंका मेट।”पुसऊ किहिस -“”तंय ठीक कहत हस – मंय करलेंव गलत या नेकधरमिन के शादी रचाय हंव, एकोकन नइ पर के हाथ।ओहर अब ससुराल मं रहिहय, दुख ला पाय या सुख उपभोगअगर मोर तिर बिपत बताहय, पर मंय कहां ले करहूँ दूर!धरमिन हा ससुरार मं अभि हे, मंय हा जाहंव छुईखदानओकर बारे पता लगाहंव, आखिर ओकर का हे हाल?”अपन गांव तन पुसऊ लहुट गिस, बढ़िन फकीरा समझू शीघ्रगीन फकीरा के घर तिर मं, करिस फकीरा हा ए गोठ –“”बन्दबोड़ हा हवय पास मं, काबर करत तड़तड़ी जायतंय थोरिक क्षण बिलम मोर कर, कुछ सवाल के लान जुवाप।एकर पहिली रहत रेहे हस, राजिम नाम तीर्थ स्थानपर अब ओला छोड़ डरे हस, इही क्षेत्र मं करत निवासस्वर्ग नर्क के कथा ला जानत, कर्मकाण्ड के जानत पोलकतका लूट तीर्थ मं होथय, सब के भेद बता तंय खोल?”“”स्वर्ग नर्क के झूठ ला रच के, जग ला लूटत कर व्यापारपाखण्डी के नीच कर्म पर – दूसर ला बांटत उपदेश।होत तीर्थ मं लूट भयंकर, कर्म निष्ठ करथंय खुद पापस्वर्ग धर्म यदि तीर्थ बिरजतिस, काबर आतेंव ए अतराप!”एकर बाद फकीरा रमझू, दूनों घर के अंदर अैएनउहां रिहिस ढेरा अउ पटुवा, ओमां गिस रमझू के आंख।किहिस फकीरा ला रमझू हा -“”ढेरा पटुवा हे घर तोरमोर इहां हे गाय एक ठक, पर “गेंरवा’ के बहुत अभाव।तंय गेंरवा बनाय बर जानत, डोरी बटे – कला के ज्ञानएक गेंरवा बना मोर बर, अपन कला के कर विस्तार।”
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits