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मुसका मुचमुच कथय फकीरा -“”तंय लालची बहुत हुसियारधनवा के घर देखेस जेवन, उहां खाय ओंड़ा के आत।ढेरा पटुवा पाय मोर घर, तब “गेंरवा’ बनाय कहि देसठीक हे भई “गेंरवा’ बनात हंव, तोर बात के होवत मान।”धरिस फकीरा हा ढेरा ला, पटुवा गुच्छ ला दाबिस कांखगुच्छा ले पटुवा ला हेरिस, ढेरा मं फांसिस तत्काल।ढेरा ला घुमात ताकत कर, डोरी के होवत निर्माणकरत फकीरा हा कंस मिहनत, साफ दिखत छाती के पांत।कड़कड़ आंट चढ़िस डोरी मं, फेर पूर के “भांज’ चढ़ैसबाद कंसाकस फांसा मारिस, डोरी तिन भंजन बन गीस।नरियर बूच मं सोंट साफ कर, गेंरवा बांधिस मुड़ी ला बांधजउन काम के उदिम उचाइस, आखिर देखा दीस कर पूर्ण।दीस फकीरा हा रमझू ला, अदक नवा गेंरवा बस एककहिथय -“”श्रम मं देह पिराथय, पर वास्तव मं मिलथय लाभ।धनवा के घर खूब खाय हंव, एकर कारण असमस पेटपर मिहनत मंय हंफर करे हंव, हल्का असन पोचक गे पेट।”रमझू कथय -“”मिहनती हस तंय, वृद्ध होय जस बर के पेड़पर तंय कभू व्यर्थ बइठस नइ, तभे ठोस हे अब तक देह।जे मनसे मिहनत ले भगथय, रहन सकय नइ कभू निरोगअनबन रोग मं फदके रहिथय, आखिर मरत बिपत ला भोग।”रमझू पूछिस -“”बता भला तंय – तंय हा करबे बइठ अरामया कोई अउ काम बचे हे, तेला भिड़के करबे पूर्ण।”कथय फकीरा -“”जलगस जीवन, तलगस मिहनत सक भर कामहमर इहां हे मोट्ठा लकड़ी, पर बारे बर मुश्किल होत।ओमन ला मंय पतला चिरहूँ, ताकि होय बारे के लैकलकड़ी सिपच के बरही भरभर, बारत तेन कष्ट झन पाय।”“”तंय हा अब लकड़ी ला चिर भिड़, मंय हा जावत खुद के गांव”अइसे बोल निकल गिस रमझू, करत फकीरा भिड़ के काम।लकड़ी चीरत हवय फकीरा धर के घन अउ टांचा।साथ मं टंगिया छिनी मदद बर ताकि रुकय झन बूता।लकड़ी ला लकड़ी पर रखथय, टंगिया मार बनैस सुराखछिनी घुसा के – लगा निशाना, ओकर पर घन मारत ठोस।लकड़ी कतका एेंठ बतावय, फर फर फटत लगत बर्रासपात फकीरा के काम सफलता, ओकर मन उमंग उत्साह।निपटा काम फकीरा बइठिस, पटका मं पोंछत श्रम बूंददुनों हथेली भर फोरा हे, तेला देखत टकटक आंख।ओकर पुत्र सनम हा पहुंचिस, जउन बुड़े हे दुख के तालओकर डहर हथेली रखथय, ताकि देख ले फट ले साफ।कथय फकीरा -“”देख हथेली, फोरा उपके हे कई ठोकचंगचिंग दरद हाथ भर घुमरत, मिहनत के तंय देथ कमाल!”सनम निकालिस गोठ टेचरही -“”तोर हाथ फोरा पर जायमिहनत मं चुर चुर थक जावस, या फिर दरद मं कल्हरत जास।तोर प्रशंसा कभू करंव नइ, तंय हा भोग खूब तकलीफतंय हा जइसे कर्म करे हस, फल ला चीख उही अनुसार।”परिस फकीरा हा अचरझ मं -“”तंय हा विकृति कहां ले लायतोर दिमाग गरम हे काबर – बिन छल कपट तंय फुरिया साफ“”सोनसाय हा बना के राखिस, अपन पुत्र बर धन बेशुमारतब तो धनवा हा सब झन ला, देइस नेवता झारझार।धनवा कतको खर्चा करही, मिलिहय तभो दूध घी भातपर तंय पूंजी नइ जोड़े हस, मारत हे अभाव हा लात।चरचर परत हाथ भर फोरा, तभे पेट मं अन्न बोजातकरे हवस तंय हा चण्डाली, ओकर दुख हम भोगत आज।”गोठिया सनम हा मुंह ओथरा लिस, दांत काट फेंकत नाखूनवृद्ध फकीरा थथमरात अब, मानों – ओकर उसलत खाट।जीवन भर सिद्धान्त बनाइस, एक घरी मं होवत नाशजइसे बंधिया फूट जथय तंह, जमों नीर हा बोहा खलास।कथय फकीरा -“”तंय भोजन कर – हेर बड़े टाठी भर भातपेट जहां पोटपिट ले होवय, तब फिर बाद हाथ कर साफ।”डोकरा के अंटियहा गोठ सुन, सनम भड़क गे कर के रोष-“”धनवा घर के नेवता मं मंय, हाही बुतत ले लेंव दमोर।ओंड़ा तक ले अन्न बोजाये, कइसे सहय पेट अउ भारतंय हा अटपट काबर बोलत – जब कि हवस बुजरूक हुसियार?”जइसे मारे जथय दंतारी, कोरलग असन पाग ला देखकाबर चूक फकीरा जावय, जब सपड़ाय सुघर अक टेम।कथय फकीरा -“”तंय हा जइसे, सक बाहिर अनाज नइ खासउसने मंय जरूरत ले बाहिर, धन नइ रखेंव स्वयं के पास।पर के बांटा के अनाज ला, तंय खाये बर कनुवा गेसमंय हा स्वयं के स्वार्थ पूर्ति बर, करन पाय नइ पर के घात।सोनसाय – सुद्धू अउ मंय हा, एक गांव के अन इन्सानसुद्धू – मोर राह एके ठन, पर सोनू मचैस कंस लूट।बर के पेड़ – चरोटा अउ अन, जाम खड़ा होथंय संग एकलेकिन बर हा शोषक होथय, पर के वृद्धि करत हे छेंक।मात्र अपन उन्नति बर करथय – पाट के भाई के नुकसानरस अउ जगह झटक के होथय, कई काबा के रूख बड़े जान।इसने पर के हक ला झींकिस, सोनसाय हा सकलिस मालहम सब ला अपने माने हन, निछन पाय नइ ककरो खाल।”रखिस फकीरा हा सुतर्क तंह, सनम के शंका सब मिट गीसनिंदई करे ले खेत हा सुधरत, बन दूबी के घुसरत टेस।सनम हा उठ नांगर सम्हरावत, करना हे ओलहा के कामदूसर दिन हा आय चहत तंह, सनम छोड़ दिस करे अराम।
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