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तुम अनाज ला नष्ट करत हव ओला छोड़ के जूठा।इही टेस के कारन मारत भूख रोग मींधू हा जूता।सब भेद खोल दिस -”मंय हा जहर रखे हंव साथएला जल मं मेल दुहूं तंह – पटपट मर जाहंय सब जीव।फत्ते खुद सच बिखेद ला ऊंचहा मानतमींधू फोरिस, तब ओला चढ़गे कंस क्रोधतंह पिनकू हा छोड़िस सोगपिनकू के दर्जा गिराय बर, सब मरते दम मींधू ला सुना के डांटत खूब –“वह रे राष्ट्रभक्त परमार्थीदोहनत, बहुत दिखात नेक सिद्धान्तहोटल के तंय निकल कलेचुप, वरना तोर अवस प्राणान्त”।ओहर हवय घलो ए जोग।पिनकू हा फत्ते पर बखलिस छरिस -”मंय ताकत मं बहुत सजोरतोला रचका खेद सकत हंव, मार सकत हंव नक्सा तोर।पर फोकट ”काय पाते तंय मनखे के झगरा बढ़िहय, इहां आय हें अउ कई लोगकर हत्या।उंकरो शांति भंग हो जाहय, तब मंय रहि जावत चुपचाप।”अैकस उमेंदी संग मं कंगलू, अउ गोबरुजुगबती सुहानएमन हा अनाथ लइका एं, जीयत भूख बिपत काकर बुध ला ताप।मान चलत हस खोल मोर तिर सत्तम।किहिंस उमेंदी हा कचरा ला मींधू हंफरत हलू निकालिस -”तंय जानत हस परिचय जीवन मोरमंय पहिली के आंव विधायक, मांगे के आदत हे मोर।पलिही मंय हा वोट ला मांगवशिक्षित पढ़े युवक अंव, उही सुभांव करत हंव मांगमगर काम बिन किंजरत खोर।मोर साथ लइका आए हें, एमन हा असहाय अनाथ।इंकरे बर होटल इही बीच मं जाथंवएक विदेशी, जिनिस मांगथंव जूठा शेषमोर पास पहुंचिस चुपचापअदमी मन के कपड़ा मंगथंव, ताकि ढांक ले खुल्ला देह।तोर ले तक मंय रखत अपेक्षा ओहर बोलिस जूठा जिनिस ला कर दे दानएकर ले कई लाभ हो जाहय“मंय हा हरिहंव, तोर होय नइ कुछ नुकसान।जतिक अस दुख संताप।जेन जिनिस हा फटका जाथयमंय तोला रुपिया देवत हंव, पर अब नइ होवय बर्बादतंय उठा एक ठक कामबच्चा मन के पेट भराहीपानी मं विष मिला बेहिचक, एमां रखिहंव गुप्त तोर जसी जयकार।”जे नाम।”कचरा मंय घोखेंव -”चहत हंव मंय हा अकचका के बोलिस “तंय हा फभे के लाइक बोलबढ़िया शासकीय पद एकमंय जूठा ला कइसे देवंव, यदि मोला ब्यापत बुरा कनौर।”रुपिया मिल जाहय, तंहने पटा दुहूं फट घूंस।“बेरी बेरी दउड़ के आहंवफिर नौकरी तो खत्तम मिलिहय, जिनिस मांगहूं आरुग साफभरभर बर जाहय दुख फूसमोला देख घृणा तंय करबेआय विदेशी तेकर मानों, आखिर मं करबे इन्कार।तभे लक्ष्य आहय खुद दौड़।”जेन जिनिस मंय हा मांगत हंवरुपिया ला गिन दीस विदेशी, सक्षम बढ़िस बिकट लालच के फेंके रोगओकर बात मान के आयमंय अभि, काम अनर्थ करत बिन सोग।”पर अभाव मं जेहर जीयतपिनकू बोलिस – “अर्थ पाय हस, ओकर बर एहर बहुमूल्य।ले मोला नइ अर्थजे पर बता विदेशी के फेंके के लाइकछैंहा ला, ओहर इनकर बर स्वीकारवरना भगा जहय ठंव छोड़”।तंय मींधू हा आनाकानी झन करस्वीकार करत नइ, हरहिन्छा दे जूठा चीज।”ओहर फंसे कड़क दू ओर“तंय बोलत तेला मानत हंवखाई कुआं दुनों जब संघरा, उठा लेग मनमाफिक चीजकते कते तन लेगय गोड़।पर झन होय आखिर मींधू हुंकी ला भर दिस – “बने के बिगड़य भावी मोर नकमरजी, एकोकनिक आय कहां विदेशी चुप बइठे हे – चल बतात हंव ओकर धाम”।दूनों झन आंच।”थाना मं चल दिन, उहां हे अगमा थानेदारबालक मन जूठा जहां शत्रु के भेद ला सकलिनखोलिन, उंकर हृदय होगिस खुश खूबअगमा के नटिया गे आंख।किहिस उमेंदी ला फत्ते हा – “मंय हा शर्मिन्दित हंव आज।हम्मन टेस टास मारे बरथानेदार चटापट दउड़िस, प्लेट मं छोड़त खाय आरक्षक दल धर के चीजसाथएक डहर हम जेवन फेंकतजहां लुका के हवय विदेशी, दूसर तन भुखहा हें लोग।उंहचे दबिस दीन तत्काल।यदि मनखे हा खुद सुधरय अउखतरा देखिस जहां विदेशी, करय चीज के सदउपयोगखसके बर होवत हुसियारतब एकोझन भूख मरय लेकिन ओहर तरक सकिस नइ, सबके पेट रही दलगीर।”नरी ला धरलिस थानेदार।फत्ते जब कमरा के जांच हा रुपिया ला हेरिसहोइस, ओला कचरा ला पकड़ैसमिलिस उहां पर नोट अपारबोलिस गांव देश के नक्शा मिलथय, एक सेक घातक हथियार।अगमा हा खखुवा के पूछिस -”तंय हा बांथ दे बढ़िया, स्वादिल जिनिस मीठ नमकीन।इहां आय हस कारमंय अनाथ मन मींधू ला का देवंवचलवात कुरद्दा, मोर डहर ले अतकिच भेंटअपन भेद ला सच सच खोल?”कहिथंय “मंय ए देश आय एकर बर पर भारत देश मचय खुरखेद।शासन के मदद करइ मंविरोध जे करथय, धन हा बढ़त ऊन के दून।”जे अशांत द्रोहिल कंगालकचरा हा समान ला बांधिसओला हम बनात आतंकी, लइका ओकर मदद करत हर हाल।आंतकी मन ला पकड़ा दीसहमर मानथंय, तोड़ फोड़ कर लेथंय जानफत्ते हा पिनकू ला देखतइही समस्या ले निपटे बर, ओकर आंख कृतज्ञ भारत देश के भाव।जाथय जान।फत्ते वाजिब उन्नति होन पाय नइ, अधर मं लटकत जमों विकासतंहने भारत देश हा होटल ले निकलिसहोथय, गीस उमेंदी बालक साथअब आगू कोती का होवत – ध्यान लगा अन्य देश के देखव हाल।आर्थिक दास”।मींधू अगमा हा कचरा तिर अमरिस, झट हेरिस चरपा अस नोटरुपिया खखुवा के गड्डी ला देखिस, पिनकू हा चाबत हे ओंठ।बोलिस -”चल संग मनुखमार जासूसअचरच भर मन अंदर सोचत – यहू दूसरा अस बेकारकहां ले पाइस अड़बड़ रुपियाथाना मं फिर अउ बोकराहंव, पता चलत नइ कुछ सच सार!मरते दोंगर रहस्य ला पूछ”।दूनों झन होटल ले निकलिन, तंह पिनकू अउ मींधू हा हेरिस बोल ला बोलिस “तुम पकड़ाय शत्रु ला आज“मोर बात झन बुरा मानबेतुम्मन हव तारीफ के काबिल, मंय बोलत हंव अंतस खोल।होत हवय भारत ला नाज।तोर साथ ला मंय छोड़त हंवमानव के हित करय जउन हा, अरझे हवय एक ठन कामहम चाहत हिम्मती जवानओला मंय मुड़ हा अब निपटाहंवऊपर होत गरब मं, रुकन पांव नइ खमिहा गाड़।”तुम्मन देशभक्त इंसान”।थानेदार ला पिनकू किहिस बोलिस -”उहिच मंय सोचत”जनता के जीवन बच गीसओमां मोर हाथ नइ थोरको, मंय हा घलो बिलम नइ पांवबस मींधू भर करिस कमाल।तोर ले पहिली झप खसकत हंवएहर अपन साथ मं लेगिस, कतको बुता करत हें खांव।”याने बना सहायक एकपिनकू बरदी के चरवहा हा मींधू ला छोड़िसरखथय, ओ तिर ले खसकिस कुछ दूरमदद करे बर टेचा एक”।कोन्टा लुका अपन थानेदार विदेशी मन सोचत -“अब रहस्य गिन ओ तिर छोड़ के पता लगांव।थाना।मींधू कहां ले रुपिया पाइसपिनकू काबर रुकतिन परगे पांव बढ़ाना।“मंय हतियारा लालच मं पर, ओकर काय अरझगे जोंगे रेहेंव क्रूर के कामसत्य बात के पता लगाय तबलेकिन तंय हा बीच मं आके, मन छेंक देस होवत अनियाव।अउ उपरहा मोर रक्षा बर, करत प्रशंसा रख के शंका लिही अराम।’तर्कवाकई तोर मोर मं अंतर, अमृत विष मं जतका फर्क”।दूसर तन मींधू हा सोचत – कते डहर ले पिनकू अैमसदुनिया भर धथुवा के भेद ला पूछिसबोलिस, सच बताय मोला चमकैस।तंह पिनकू हा पारिस बेंग-पर ओकर ले मंय चलाक हंव“मोला चढ़ा अकास झनिच तंय, हटा देंव जतका अस विघ्नझन कर अभिच प्रशंसा नेंग।अब वरना तोला फंसा दुहूं मंय फिक्कर ले दुरबाहिर, होहय बुता पूर्ण निर्विघ्न।– तंय हड़पे हस नंगत नोटओकर काम ला पाठक सुन लव – हवय शहर मं नलघर एकभेद खोलिहंव सब ठंव, तंहने फइल जहय हर ओंठ।नल ले फइलत उहां तोर राह हा ठीक के जल हागल्ती, अपन कर्म के चहत हियावबइसाखू व्याख्याता तिर चल, उही ला पीथंय जीव अनेक।हा करही सही नियाव।मींधू तिर साहित्य क्षेत्र मं तीक्ष्ण जहर हेआय समीक्षक, जहर ला जल मं करिहय मेललेख सुधारत करके वारजतका मनसे पानी पीहंयपर यथार्थ घटना जे घट गिस, उंकर खतम जीवन के खेल।ओकर पर का रखत विचार?”मींधू सावधान बन तरकतएमन बइसाखू तिर पहुंचिन, पहुंच गीस नलघर मिलगे उंहचे बालक एकबइसाखू के पासगलत बुता करना ते कारनपुत्र ए छबलू, ऊपर तरी होत हे सांस।ओकर गाल चिकोटी देत।तीक्ष्ण जहर ला हेर लीस अउएमन फोरिन पूर्व के घटना, आगू तन के करिस उपायबइसाखू व्याख्याता पासओतकी मं पहुंचिस पिनकू बइसाखू हाबात समझ के, मींधू पास बम्ब अस धांय।सोचत देखिस ऊपर अकाश।मींधू पर ललिया के विष भड़किस – “तोर काम ले आवत शर्मककरो प्रान ला टप झटकिसजबरन छिनना, कहिथय – “एहर काय मितानकहां आय मानव के धर्म!लगत – खाय मगर खुशी ए बात के जिनिस धरे होवत – जग मं बांच गीन निर्दाेषअब ले ठीक चाल रेंगे कर, सदा रखे कर कायम होश।गलत काम कर नोट पाय हस, चल तो भला दुनों झन खान।याने करे हवस अपराधअरे अरे पर मंय गल्ती बोलततोला क्षमा देत हंव, उत्तम चीज तोर भर आयअब पूरा कर खुद के साध।तभे खाय सांप के तोरेच हक हेविष जीवन ला हरथय, तब तंय कांटा हा बस स्वयं गफेल।”गड़ सुख हर लेतपिनकू हा विष ला खावय कहिपर कांटा ले कांटा निकलत, मींधू डहर लेगथय हाथविष औषधि बन जीवन देत।मींधू हा पंचघुंच्चा घुंचथयघूंस खवा के झटक नौकरी, किसनो अउ जनता के कर बचाय बर जान।उपकारपिनकू शोषक द्रोहिल ले टक्कर कर, तब निवृत्ति दोष के भार”।मींधू बोलिस -”काबर भागत तंय हा धरे हवस का चीज“तंय बफले हस, बुरा लगिस पर मिलही लाभएकर ले का रउती करबेव्यासी बखत धान मुरझाथय, सच सच बता अपन उद्देश्य?”मगर बाद उमछावत तान”।
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