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नाम “रमेश अधीर’ ए कवि के, जेहर बसथय कोण्डागांवओहर कविता ला पढ़थय तब, श्रोता करत प्रशंसा खूब –कोठी भर भर जे छलकाइन, खोंची बर खड़े मुहाटी में।पसिया मांगत करन फिरत है, छत्तीसगढ़ के माटी में।जुच्छा पेट सुन्ना अगास हे, जेमा भूख सुरुज के गोलापीरा के जठना मं लांघन, अंगरा ओढ़े कोंवर चोलाकरजा गर फांसी होगे, आगी लगगे घांटी में।पसिया मांगत करन फिरत हे, छत्तीसगढ़ के माटी में।आस के चंदन धुर्रा बनगे, कांटा बांटा जिनगी केचांउर नैन बर सपना होगे, दर्शन मिले न कनकी केमनखे तन कठवा के पुतरी, बिपत के ढेरा आंटी में।पसिया मांगत करन फिरत हे, छत्तीसगढ़ के माटी में।हंड़िया सुरता करके रो दिस, बीते दिन ला सीधा संगराम लखन कुरिया ला छोड़िन, गांव ले निकलिन सीता संगसांस के गठरी बांध के चल दिन, घर के दुख संग काठी में।पसिया मांगत करन फिरत हे, छत्तीसगढ़ के माटी में।दानेश्वर शर्मा कवि ऊचा, बसथंय पद्यनाभपुर दुर्गकविता हेर पढ़त हे सुर धर, वाह वाह बोलत हें लोग।मइके ल देखे होगे साल गा,भइया तुमन निच्चट बिसार देवबहिनी के नइये खियाल गा।कनकी अस कइसे निमार देव।गंगा के धारा हा कइसे उलटिस भइयालहू के नता हा कइसे टूटिस भइयामया हा मोरेच बर कइसे खंगिस भइयाचिट्ठी के परगे अकाल गा।दाई के खांसी हा माड़िस – नइ माड़िस गाददा के रोगहा जर छांड़िस – नइ छांड़िस गातोर छोटे बाबू हर बाढ़िस – नइ बाढ़िस गाबस्ती के बता सबो हाल गा।आंसों मोर गंगाजल तीजा रिहिस होहीफागुन मं ओकर पठउनी होइस होहीआहूं केहे रेहेंव, रद्दा देखिस होहीघुस्सा मं होइस होही लाल गा।मोर सेती ददा के पैलगी कर लेबेमयारुख दाई के आसिस मां तर लेबेदूनों भतिजवा के चूमा तैं कर लेबेभउजी के छूबे दूनों गाल गा।कवि मन कविता पाठ खतम कर सब ले पैन प्रशंसा।सुनत सुनावत टेम खसकगे तभो बुतत नइ हाही।श्रोता जमे मंच के तिर मं, कुछ सुरता नइ खेत कोठारकवि मन करिन प्रार्थना तंहने, श्रोता मन रेंगिन मन मार।ग्रामीण चहत – देन हम रुपिया, पर कवि मन कर दिन इंकारबोलिन – अपन गांव आये हन, काबर लेगन धर के कर्ज!सुम्मत राज ध्येय जब पूरा, तभे मनाबो हम तिवहारपेटमंहदुर बन कोंहकोंह खाबो, लहुट जबो धर कड़कड़ नोट।”जय जोहार – कर कवि मन रेंगिन, मन गुप्ती मं धर के प्रेमअपन अपन घर मनखे जावत, नव उमंग धर धर के रेम।कुछ दिन बाद ओन्हारी पकगे, सुंट बंधगे मजदूर किसानकेन्द्रीय शक्ति बली होथय कहि, एक साथ भिड़ लगिन कमान।चना गंहू अरसी ला काटिन, राखिन एक ठन जबर कोठारफसल ला मींजत ओसरी पारी, बाद ओसाइन सूपा धार।डुठरी ला कोटेला कुचरिन, तब घोटरे अन बाहिर अैरसघेक्खर बण्ड खात रहपट तब, सम्मुख ढिलथय वाजिब तथ्य।बन्दबोड़ हे जंगल तिर मं, ओकर पास हवय बन्छोरआय ऐतहासिक स्थल तब, नाम उदगरत हे विख्यात।कई पथरा के मूर्ति उहां पर, एक मूर्ति हा भव्य विशालमनखे उंकर मान पूजा कर, पात अपन मन सुख संतोष।डकहर सुखी घूम लिन जंगल, तेकर बाद गीन बन्छोरदेख निझाम जगह पबरित अस, बइठ दुनों झन करत सलाह।डकहर कहिथय -”जमों कृषक मन, राह चलत हें सुम्मत बांधसब बिरता ला मींजिन कूटिन, एक जगह पर रखिन सकेल।एकर मतलब साफ समझ तंय – होत संगठित सब ग्रामीणधनवा पर अब धावा चढ़िहय, ओकर शासन करे समाप्त।”बोलिस सुखी -”उचित बोलत हस, धनवा के भावी अंधियारयदि धनवा ला संग देवत हम, गंहू के संग मं कीरा जान।धनवा पहिलिच ठोंक बता दिस – जब परिवर्तन अै स समाजमध्यम वर्ग मरिस हे पहिली, बाद गिरिस शोषक पर गाज।
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