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क्रांति के भेद समझ के अब हम नइ तो खावन माछी।धनवा ले सम्बन्ध टोर के – जन के पीयन मानी।जनता जइसन जेवन करिहय, हम्मन जेबो उहिच समानओकर तोलगी ला यदि धरबो, निश्चय बचा सकत हम प्रान।”डकहर राखत प्रश्न सुखी तिर -”पर शंका ला तंय कर दूरहम धनवा के छांय असन अन, सदा रहत हन ओकर साथ।पर अब ओकर संग ला छोड़त, हम दूसर के पकड़त बांहसच मं हमर कोन – हम काकर, हमर कोन अरि – कोन मितान?”किहिस सुखी -”सिद्धान्त हमर सुन, आय हमर बर ओहर शत्रुघाटा खतरा दण्ड ला देवत, यने हमर हित कर नइ पाय।हमर मित्र हा हमला देवत – लाभ सुरक्षा स्वार्थ इनामयने हमर हित के रक्षक ला, हम मानत हन ईष्ट समान।अब मंय निर्णय साफ देवत हंव – हम तुम दुनों पूर्व अस एकपर धनवा ले दूर रहन हम, अब नइ देखन ओकर द्वार।”दुनों सुंटी बंध – बात गुप्त रख, लहुट अैअन सुन्तापुर गांवधनवा के हालत ला देखिन, वास्तव मं होवत हे पश्त।धनवा लरथराय बिन मनखे, कोनो नइ देवत सहयोगनौकर काम करे बर छोड़िन, अब डांटत फिक्कर के रोग।धनवा अन्य गांव जावत पर, ओमन ठेंगवा देखा भगातएक देश के निज बाते पर, दखल करय नइ दूसर देश।डकहर सुखी पक्षधर तेमन, मुंह कर करूभगत हे दूरधनवा हीन हवय ऊंकर बिन, कनिहा टांठ परत हे लोच।पता चलिस के अब दूनों झन, जनता साथ मिला लिन हाथक्रांति के बाजा बजा इही मन, सब झन ला करिहंय सावचेत।पर बन्जू हा गर्व मं अंइठत, चेथी कोती रखे दिमागखुद ला पूंजीपति समझत हे, खुद ला समझत सब ले ऊंच।मेहरूहा बन्जू ला बोलिस -”कतको साफ करत हें खेतपर बन दूबी हा बच जावत, ओहर फसल ला करथय नाश।डकहर सुखी राह पर आगें, ओमन देत क्रांति ला साथपर तंय रहड़ा बन के कूदत, यदपि रखे हस भ्रम ला पाल।तंय हा हमर ले धनवन्ता अस, पर तंय पूंजीपति नइ आसपूंजीपति के व्याख्या करथंव, ओला तंय हा सुन कर चेत-ओमन कतको खर्चा करथंय, पर नइ होय कभू कंगालबड़े रोग हा तन मं सपड़त, ऊंकर धन नइ होय समाप्त।ओमन अप्रत्यक्ष ए शासक, शासक तक ला लेत खरीदशिक्षित उच्च – बुद्धि ऊंचा मन, मंगत जीविका ऊंकर पास।यद्यपि ओमन आर्थिक मुजरिम, पर नइ बनंय कभू अभियुक्तदुनिया घूम करत हें खर्चा, पर धन वृद्धि ऊन के दून।”मेहरूहा बन्जू ला बोलिस -”मितवा, तंय अस जन सामान्यहम सामान्य जीव अन तब तंय, हमर मदद ला कर बिन भेद।”बन्जू के भ्रम हा मिट जाथय, कहिथय -”तंय बोलत सच तथ्यवास्तव मं हम पूंजीपति नइ, धन हा कभु हो जाहय नाश।यदि अकाल मं फसल भुंजावत, शासन तिर हम मंगथन भीखअपन पुत्र ला बांटा देवत, तंहने हम होवत कंगाल।”बन्जू हा मेहरूला बोलिस -”मोर पास जतका धन चीजमंय हा गांव ला अर्पण करथंव, क्रांति ला मंय देवत हंव साथ।”सुघर बात सुन मेहरूहर्षित, मिहनत आज सफलता पैसबन्जू ठीक राह पर लगगे, निश्चय पूरा सब उद्देश्य।हरहर हरहर हवा चलत अब, गिरत पेड़ के सुखा के पानलगथय – पूंजीवाद हा मरिहय, भट के सत्तारुढ़ समाप्त।होली परब आय हे लकठा, चलव मनान सुंटी ला बांधबाद मं लड़बो छोर कछोरा, पर अभि खेलन प्रेम के रंग।जेला जोहत एक बछर तक, अभर गीस उत्सव के रात“होली हे’ लइका चिल्लावत, घर घर ले मंग लकड़ी लात।“चोरी झन हो’ कहि बुजरुक मन, ताका करत – करत हें जांचपर रापा खरिपा हा चलदिस, टुरा चोरा के मारत टेस।जेन मेर “होली’ हा बरिहय, मनखे बइठ गीन मन मारओतिर लकड़ी के गांजे ढिक, जेहर गोला कामिल कांड़।बुजरुक मन लकड़ी ला देखिन, तंहने होवत हें सन सांयदेत युवक मन ला समझउती -”बेढंगा अस होवत काम।यह इमारती लकड़ी ला तुम, बिन सुल बारत अबुज समानलकड़ी बचा रखव भावी बर, कतको ठक बन जहय मकान।जंगल धंसा तिहार मनायेन, चिखना परत दुखद परिणामवायु प्रदूषण रोग अस बाढ़त, ठीक समय नइ बरसा घाम।पूर्व कुजानिक करे हवन हम, जानबूझ माछी झन खावधरती माता ला हरियर रख, खुद भावी ला सरग बनाव।”उंकर सलाह जंचिस तंह रखदिन हेर के कामिल लकड़ी।रांई झुरी जलऊ लकड़ी ला रचत हवंय गोलिया के।बांस घंसर के आग दगाथंय, बाद ढिलिन लकड़ी मं आगजरत बरत होलिका पापिनी, अत्याचार के पाग समाप्त।मनसे लीन राख के टीका, एकर बाद छोड़दिन ठौरघर मं पहुंच रुसुम ला फोरत, अउ “प्रहलाद कथा’ ला कान।आज आय होली के उत्सव, सबके मन मं भरे उमंगकते मित्र अउ कते हे दुश्मन, कोन बतान सकत हे भेद!परसा फूल टोर के लानिन, गघरी मं ओइरिन सब फूलओकर साथ नाय हें पानी, गघरी ला चूल्हा रखदीन।धकधक आगी हा धधकत हे, खउलत जल के संग मं फूलजहां फूल के रंग हा ओगरिस, देखव बनगे पक्का रंग।ओकर साथ बनत पिचकारी, ठाहिल बांस के पोंगरी आयकतको रंग भरय पिचकारी, लेकिन झटका ला सहि जाय।
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