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|रचनाकार=मिलन मलरिहा
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}}
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<poem>
पुस पुन्नी के तिहार आगे
चला रे चला छेरछेरा मांगे
धरके झोला निकला सबो
लऊहा रेंगबो लऊहा पाबो
देखतो टिंकू के झोला भरगे।
आज सबो हे दान देवइया
अऊ सबो हावय मंगवईया
कोनो के घर कोनो जावय
जात धरम ह बंद हे भईया
मनखे-मनखे म समता जागे।
कोनो बाजा-झांझ बजावय
कोनो डण्डा नाच देखावय
लईका छेर-छेरा सोरियावय
कोठी के धान ल बलावय
गांव गलि चिहूर चिल्ला छागे।
सबके झोला हे तन-तनातन
पीठ म लाथे नोनी रेंगे दनादन
गरु हे झोला नई देवय कहूं ला
बेचही ओहा ओला बिल्लू-ठेला
सबो लईका-मन पईसा पागे।
दऊरी बेलन अउ गाड़ा बइला
सबो बईठे हे ठलहा ठलहा
धान पान ह सबके जतनागे
खेत म भाजी तिवरा सजागे
बोरा सिलागे कोठी छबागे।
लईकामन भिनसरहे ले जागे
पुस पुन्नी के तिहार आगे
चला रे चला छेरछेरा मांगे।
</poem>
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पुस पुन्नी के तिहार आगे
चला रे चला छेरछेरा मांगे
धरके झोला निकला सबो
लऊहा रेंगबो लऊहा पाबो
देखतो टिंकू के झोला भरगे।
आज सबो हे दान देवइया
अऊ सबो हावय मंगवईया
कोनो के घर कोनो जावय
जात धरम ह बंद हे भईया
मनखे-मनखे म समता जागे।
कोनो बाजा-झांझ बजावय
कोनो डण्डा नाच देखावय
लईका छेर-छेरा सोरियावय
कोठी के धान ल बलावय
गांव गलि चिहूर चिल्ला छागे।
सबके झोला हे तन-तनातन
पीठ म लाथे नोनी रेंगे दनादन
गरु हे झोला नई देवय कहूं ला
बेचही ओहा ओला बिल्लू-ठेला
सबो लईका-मन पईसा पागे।
दऊरी बेलन अउ गाड़ा बइला
सबो बईठे हे ठलहा ठलहा
धान पान ह सबके जतनागे
खेत म भाजी तिवरा सजागे
बोरा सिलागे कोठी छबागे।
लईकामन भिनसरहे ले जागे
पुस पुन्नी के तिहार आगे
चला रे चला छेरछेरा मांगे।
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