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हिन्दी है हम / मिलन मलरिहा

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<poem>
संस्कृत जननी, हिन्दी माई
अउ छत्तीसगढ़ी हे मोर दाई
नवाजूग अंगरेजी बहुरिया के
चलत हे कनिहा मटकाई।

घर मा बहुँ अंगरेजिया हे
बेटा घलो परबुधिया हे
रास्ट्रभासा नईहे कोनो
तभे तो भारत इंडिया हे।

नई चलत हे ककरो गोठ
ओकरे बोल हे सबले पोठ
कोट कचहरी ठाठ जमाए
खाके तीन तेल होगे मोठ।

समे के इही मांग हवय
बहुरिया संगे जुग चलय
लईकामन अंगरेजवा होगे
दाई के भाखा लाज लगय।

सास ससुर के दिन पहागे
जईसे संस्कृत दूर झेलागे
अंगरेजी के गर्रा-धूका म
हिन्दी ह जऊहर उड़ियागे।

कोनो कतको थाह देहत हे
बड़े-बड़े परयास होवत हे
रुख लगाए भर ले का होही
अंगरेजी के कलमी जोड़त हे।
</poem>
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