भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में
नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में ।में।यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में ।में।हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे । चलेंगे। वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे ।। टलेंगे॥
मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है ।है।सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है ।है।तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है ।है।हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे ।जलेंगे।पीछे नहीं टलेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।चलेंगे॥
अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में ।में।घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में ।में।धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में ।में।बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे ।लेंगे।जब तक पहुँच न लेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।चलेंगे॥
</poem>