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पहुंचा दी जायेगी ।<br>
तू क्यों पुरूष के हाथ की,<br>
तू दुर्गा बन, तू महालक्ष्मी बन<br>
तू क्यों भोग्या समर्पिता बनती है?<br>
तू अपनी "पहचान" को,<br>
विवशता का रूप न दे,<br>
वर्ना नर भेडि.ये भेडि़ए तुझे,<br>
समूचा ही निगल जाएंगे ।<br>
खोकर अपनी अस्मिता को,<br>
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