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Kavita Kosh से
देवों की धरती का यूँ ही सुलगे नहीं कपार
किसे नहीं मालूम कि बौंसी देवों का यह घर है
या आँखों से नहीं देखताµमधुसूदन देखता मधुसूदन ऊपर है
सबको यह मालूम, मथाया था सागर इस भू पर
मन्द्राचल की मथनी से लक्ष्मी तक आई ऊपर
बिन मनुष्य के बौंसी लगती; जैसे, हो श्मशान
गेना है या शिव ही, जैसे, धूनी पर है ध्यान
सभी घुसे हैं घर में; ऐसे, पुलिस त्रास से चोर जुल्म धूप का ऐसा; जैसे, नादिर का घनघोर
तड़प उठा उस तेज धूप से एक बार तो गेना
गर्म छड़ों से दाग गया हो कोई उसका सीना