भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन दिनों वह-1 / ब्रजेश कृष्ण

148 bytes added, 05:56, 17 फ़रवरी 2017
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक=|संग्रह=जो राख होने से बचे हैं अभी तक / ब्रजेश कृष्ण
}}
{{KKCatKavita}}<Poempoem>इन दिनों
अक्सर देखती है वह
पेडों को गुनगुनाते हुए