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<poem>
एकदम उल्टा ज़माना आ गया है।कौए गिद्धों को मारने लगे हैं और चिड़िया बाज़ों को खाएँ।घोड़ों को चाबुक मारे जा रहे हैं और गधों की गेहूँ की हरी-हरी बालें खिलाई जा रही हैं।बुला कहता है हुज़ूर(प्रभु) के आदेश को कौन बदल सकता है।एकदम उल्टा ज़माना आ गया है।उलटे होर ज़माने आए
उलटे होर ज़माने आए।
काँ गालड़ नूँ मारन लग्गे,
चिड़िआँ जुरे<ref>शिकरा</ref> खाए।
उलटे होर ज़माने आए।
'''मूल पंजाबी पाठ'''इराकिआँ<ref>अरब इराक का तेज़ घोड़ा</ref> नूँ चाबक पैदे,गधो खूत<ref>ज़वी, हरा गेहूँ</ref> खवाएउलटे होर ज़माने आए। अगले जाए बकाले बैठे,पिछरिआँ फरश वछाए।उलटे होर ज़माने आए।
उलटे होर ज़माने आए,काँ लग्गड़ नु मारन लग्घे चिड़ियाँ जुर्रे खाए।अराकियाँ नु पाई चाबक पौंदी गड्ढे खुद पवाए।।बुल्ला हुकम हजूरों आया ,तिस नू कौन हटाएनूँ कौण हटाए।
उलटे होर ज़माने आए।
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