भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
मिनख कयो- उळइयोड़ी जेवड़ी मै तनै सुळझा र थारो कत्तो उपगार करूँ हूँ ! जेवडी बोली- तूं किस्यो क उपगारी है, जको म्हारै स्यूं छानूं कोनी। कोई और नै उळझाणै खातर मन्नै सुळझातो हुसी !
</poem>