भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,088 bytes removed,
20:37, 28 मई 2008
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चनबच्चन
}}
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिडि़या के भरते कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझको मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता है पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!