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चलता ही रहता यह निरंतर
जानकर भी इससे हम
क्यों रहते हैं अनजान
समय बड़ा बलबान बलवान रे भैया
ऐसा जतन करो
दिक् दिगंत तक कीर्ति –गंध से सुरभित पवन करो
सत्य धर्म की उड़े पताका कटुता दूर करो
महक उठे जननी का आँचल ऐसे रंग भरो
समय बड़ा बलवान
कभी नवाजे बल से धन से
देता रुतवे का साज - सामान
धन में रम के भूले जब मानुष
खुद ही खुद की पहचान
दे पटखनी मिलाये मिटटी में
कर देता है यह हलकान
समय बड़ा बलवान रे भैया
समय बड़ा बलवान
समय से कोई बच ना पाया
पीछे भागे हरपल इसका साया
हो जाए कब कुछ का कुछ
पहेली अजब कोई बूझ ना पाया
कभी उदित कभी अस्त
भाग्य विधाता समय तटस्थ
परिवर्तन का पाठ पढाए ये “सपना”
रखे ना किसी संग जान - पहचान
समय बड़ा बलवान रे भैया
समय बड़ा बलवान
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