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मुक्तक / श्रीकृष्ण सरल

No change in size, 17:49, 24 मार्च 2008
यदि किसी एक के भी हम आँसू पोंछ सके<br>
यदि किसी एक भूखे को रोटी जुटा सके,<br>
सौभाग्य हमारा, यदि एसा ऐसा कुछ कर पाए<br>
अपनेपन का धन यदि हम सब में लुटा सकें।<br><br>
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