भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - <br>
जिनकी लाशों पर पग धर कर<br>
आजादी भारत में आई।<br>
वे अब तक हैं खानाबदोश <br>
कलकत्ते के फुटपाथों पर <br>
जो आँधीआंधी-पानी सहते हैं।<br>
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के<br>
बारे में क्या कहते हैं।।हैं॥<br><br>
हिन्दू के नाते उनका दुःखदुख<br>
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।<br>
तो सीमा के उस पार चलो <br>
सभ्यता जहाँ कुचली जाती।।जाती॥<br><br>
इस्लाम सिसकियाँ भरता है,<br>
डालर मन में मुस्काता है।।है॥<br><br>
भूखों को गोली नंगों को <br>
हथियार पिन्हाये पिन्हाए जाते हैं।<br>
सूखे कण्ठों से जेहादी <br>
नारे लगवाए जाते हैं।।हैं॥<br>
लाहौर, करांचीकराची, ढाका पर<br>
मातम की है काली छाया।<br>
बस इसीलिए तो कहता हूँ <br>
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? <br>
थोड़े दिन की मजबूरी है।।है॥<br><br>
दिन दूर नहीं खंडित भारत को <br>
पुनः अखण्ड अखंड बनाएँगे।<br>गिलगित से गारो पवर्त पर्वत तक<br> आजादी पर्व मनाएँगे।।मनाएँगे॥<br><br>
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से<br>
कमर कसें बलिदान करें।<br>
जो पाया उसमें खो न जाएँ, <br>
जो खोया उसका ध्यान करें।।करें॥<br><br>
Anonymous user