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मा / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मा
थारी ओळयूं आई
म्हनैं
जद घूम रैयो हो सै‘र रै पार्क में
अेक बाई पार्क रै ट्रैक माथै
बुहारी काढ़ै ही
बुहारी री खंख री सौरम लारै
थारौ उणियारौ दिख्यौ।
</poem>
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