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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मून धारयां बैठी रैई बा
म्हूं निरखतो रेयौ
हूक उठी...
बा जोर सूं हांसी
म्हूं देखतो रेयौ
उणनै
अबै म्हूं मून धार लियो
बा
ताकै म्हनै
देखूं बस
थिर आंख्यां...।
</poem>
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