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|रचनाकार=राजूराम बिजारणियां
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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
चालतो चालतो
मुळकूं
बतळाऊं
भाजूं
थम जाऊं...
देऊं ओळमों बात-बात माथै..!

तद, समझो आप
साव चमगूंगो
सोचो, हालगी लागै डबड़ी।

पण नीं
बात हुवै और कीं
घूमूं हूं बीजी दुनियां में
जिण में आप नीं
नीं जीयाजूण रा अबखा रंग...!

रंग...
फगत हेत रा
प्रीत रै हाथां
भरनै बाथां
खेलूं फाग
रमूं रास
देवूं ओळमों बात-बात माथै!!

ठाकरां...!
फेर क्यूं आप
तिड़काओ राफ

क्यूं...
बखत रो घोटतां घेंटू
रोप दी निजरां
म्हारी काया रै कुंडाळै

जद कै पतियारो है
इण बखत
बीजी है दुनियां
थांरी अर म्हारी !

</poem>
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