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<poem>
पान झरै तो कांर्इ्र
झर जाओ भलांई
कदास आ नीं होवै
उमर खोलै चौपड़ी
काढै
कोई लियो-दियो।

जूना हिसाब खुल्यां
लाग जावै
ब्याज-पड़ब्याज
फेर भलांईं
उमर रैवै ठंड दांई
पान झरै तो झरो भलांईं।
</poem>
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