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भूख / सतीश गोल्याण

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|रचनाकार=सतीश गोल्याण
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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
रोजीनै उगाड़ में
अखबार पढ़ीजै
रोजीनै ई अखबार में
कीं ना कीं अजूबो
समाचार होया करै, कै
आज सूरज री ऊर्जा सूं,
चालण आळी, कारण बणगी
आज अेक नूंवै भांत रो
कम्पयूटर आग्यो
पण बो माणस बठै सदा ई
अणबोल्यो बैठ्यो रैंवतो
बण कदैई नाड़ नी उठाई
जियां बीनै आं बातां सूं
कीं लैणो-दैणो नीं
आज फेरूं अेक अजूबो समाचार हो
कै विज्ञानिका,
अेक केपसूल बणायो है,
जिकां न लैयां पाछै
रोटी खाण री जरूरत कोनीं।
आ सुणता ईं बो ताचक्यो
अर ई समाचार न बण
अेकर फेरूं बंचवायो
अर, बिनै ईंया लागै हो
जियां आज,
काळती अर दीपूड़ो
रोटी खातर कोनी रोया !
बै सगळा धाप‘र सोया है।
</poem>
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