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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
आजकल बहुत व्यस्त हूँ ,
अपनी सारी तैयारियाँ खुद कर जाना
कुछ तो आश्वस्त करता ही है
वैसे भी
मैं भविष्य के अंदेशों में नहीं जीना चाहता
और मुझे यकीन भी नहीं है
रस्म निभाने वालों पर
असल में मुझे यकीन है ही नहीं किसी पर,

मान लो
चिता पर लिटाने के बाद भी
कोई लकड़ी
कहीं से चुभती रहे तो
क्या कर लूँगा मैं किसी का
उस वक्त फिर ...

बात केवल इतनी सी है
कि मौत के बाद फिर
मैं नहीं महसूस करना चाहता
जिंदगी के कष्ट !
</poem>
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