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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ग़ज़ल के मिसरे में
एक वज़्न ज्यादा तो हो सकता है
पर हरगिज़ नहीं चल सकता एक वज़्न कम
इसीलिए जब तुम नहीं होते
नहीं होती हैं मुझसे ग़ज़लें
नहीं बनते हैं मिसरे
तब मैं रहता हूँ
केवल
अतुकांत
तुम...
मेरा तुक भी हो
अंत भी !
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
ग़ज़ल के मिसरे में
एक वज़्न ज्यादा तो हो सकता है
पर हरगिज़ नहीं चल सकता एक वज़्न कम
इसीलिए जब तुम नहीं होते
नहीं होती हैं मुझसे ग़ज़लें
नहीं बनते हैं मिसरे
तब मैं रहता हूँ
केवल
अतुकांत
तुम...
मेरा तुक भी हो
अंत भी !
</poem>