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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक जिद्दी बच्चा सा है
मेरे ही अंतर्मन का एक हिस्सा
भरी महफ़िल में पकड़कर खींच लेता है
एकांत की तरफ
उत्सव में उदासी की तरफ
चमकती आँखों में आँसू की तरफ
चिर असंतुष्ट कहीं का,
समझाता हूँ, मनचाहा नहीं संभव यहाँ
जबाब देता है ...
कि न्यूनतम है उसकी चाहत
फुसलाने की हर कोशिश नाकाम देख
स्वीकार लेता हूँ झट से हार
'चाँद खिलौना' लगती है अब छोटी से छोटी माँग,
न खुद को न्यूनतम दे सकता हूँ
न उसको
अधिकतम यही संभव है
कि चाहतों से बचा जाए,
पर वो बच्चा
मेरी सुने तब ना !
</poem>
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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
एक जिद्दी बच्चा सा है
मेरे ही अंतर्मन का एक हिस्सा
भरी महफ़िल में पकड़कर खींच लेता है
एकांत की तरफ
उत्सव में उदासी की तरफ
चमकती आँखों में आँसू की तरफ
चिर असंतुष्ट कहीं का,
समझाता हूँ, मनचाहा नहीं संभव यहाँ
जबाब देता है ...
कि न्यूनतम है उसकी चाहत
फुसलाने की हर कोशिश नाकाम देख
स्वीकार लेता हूँ झट से हार
'चाँद खिलौना' लगती है अब छोटी से छोटी माँग,
न खुद को न्यूनतम दे सकता हूँ
न उसको
अधिकतम यही संभव है
कि चाहतों से बचा जाए,
पर वो बच्चा
मेरी सुने तब ना !
</poem>