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आज सडकों पर / दुष्यंत कुमार

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एक दिरया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,<br>
आज अपने बाज़ुआें बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।<br><br>
अब यकीनन ठोस है धरती हकी़कत की तरह,<br>