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12:50, 22 जून 2017
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एैलोॅ एक सँपेरा ओठोॅ में लाली, लगैलकोॅ घूमी केॅ फेरा। वें बजैलकै देखोॅ वीणआँखी में काजर, अंगूल दवायकेॅ वीण पेॅ एक, दू, तीन। कोय नै करलकै ओकरा अनचिन्ह, जुटलै बच्चा बूढ़ोॅ कमसीन। देलकै खोली सब्भेॅ पेटारा कपारोॅ में बिन्दी, जेनां चमकै बादर।
साँपोॅ-साँपोॅ में रंग श्यामल लागै रूप खजाना, कि कारण नै आबै छै अन्तरपहुना। भेलै बेकार रूप गुण खजाना, करलकै काबू पढ़ी केॅ मंतर। बान्होॅ धीरज एैतेॅ हौ दिन जमाना। बोली-बोली केॅ बेचै छै जंतर कि दगियैलोॅ छौं तोरोॅ मलमल चादर, कहेॅ तोरोॅ दिल कठोर कि कोमल छौं? है मन चंचल तोरोॅ बताय छोॅ। तोरोॅ जवानी चढ़लोॅ छौं, दिल वैकरै पर गड़लोॅ छौं। बैठोॅ "संधि" सुनोॅ पुरेन्दर। आश लगाय उमड़तै सागर। येॅयेॅ काम छेकै सात दिन सबेरा आय तालूक कुछू नै होलोॅ छै समय रोॅ पहिलेॅ, एैलोॅ एक सँपेरा। मुरखा आरो ज्ञानी केकरोॅ-केकरोॅ कहलेॅ। तड़पै छै तड़पाय छै सबनें भलेॅ, नै फँसोॅ-फँसावोॅ तोयँ दलदलें। समय जानि करीयोॅ तोहें आदर।
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