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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
बिन हाथ लगाया, दरद जाण गया
परची मोटी करी तय्यार
जांच कराइ बार लैब स्यूं
रपट पढी ना एक भी बार
सात-आठ एक गोल्याँ लिख दी
पीवण री शीश्याँ दी चार
ठीक हुयो तो महिमा थांरी
मरग्यो तो मालिक री मार

अजब लगावो मजमो, थांरी धुर्र बोलूं
थानें डाक्टर बतलाऊँ, या मदारी बोलूं !!

</poem>
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