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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
कालो कोट अर धोळी टाई
हर कालिख री करो सफाई
करियावे चोरी डाले डाका
थें सदा रहो रक्षक याँका
गुंडा - हतियारा फिरे निडर
थांरी किरपा को ही है असर
कचैड़याँ रा थें राजा हो
टके सेर बिक़े बे खाजा हो
बाखड़ में दूध संभालो थें
खळ स्यूं भी तेल निकालो थें

अजब चलावो घाणी, थांरी फुर्र बोलूं
थांने वकील मैं बतलाऊँ, या कि तेली बोलूं !!

</poem>
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