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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
बालम गया बिदेश
गौरड़ी किण विध काटे रैण
कहो या कुण जाणी !!

हिरणी सा बे नैण
कि ज्यां में काजलिया री रेख
कठे गी कुण जाणी
कहो या कुण जाणी !!
कंवला अधर गुलाल
कि ज्यां री मदमस्ती मुस्कान
कठे गी कुण जाणी
कहो या कुण जाणी !!

जुल्फां सरप सरीख
रेशमी लाम्बा-लाम्बा केश
क्यूँ उल्झ्या कुण जाणी
कहो या कुण जाणी !!

झणकती पायल सांझ-सवेर
ठुमकता- इठलाता बे पैर
थम्या क्यूँ कुण जाणी
कहो या कुण जाणी !!

निपजे जठै सदा ही हैज़
सुगंधी फुलडाँ री बा सेज
तपे क्यूँ कुण जाणी
कहो या कुण जाणी !!

</poem>
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