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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
टूटी सड़क्याँ, पसरयो कादो
जाम पड्या नाला
जनता फिर भी पड़ी है सूती
वाह बीकाणा वाह !!

ग़ली- चौराया गोधा घूमे
कद लड़सी क्या ठा
मजा लेवणिया ताक़ में ऊभा
वाह बीकाणा वाह !!

बाग़-बगीचा उजड्या सगळा
सूखी बावड़ियां
आगोराँ में कबजा हुय गया
वाह बीकाणा वाह !!

भाँग गटक के, जरदो चाबां
अठै-बठै थूकाँ
साफ़-सफाई काम राज रो
वाह बीकाणा वाह !!

पाटां घणी हथायाँ होवे
ताश घणी कूटां
टैम नहीं मिले काम करण ने
वाह बीकाणा वाह !!

धरणा खूब लगावाँ मिल के
घणा कराँ रोल़ा
अखबारां में जग्या बणावाँ
वाह बीकाणा वाह !!

पतला-संकड़ा मारग, ज्याँ पे
डट्या पड्या गाड़ा
मारग में भी मार्ग ढूँढ़ो
वाह बीकाणा वाह !!

खूब उडावाँ किन्ना मैं तो
घणी हुवे लड़ताँ
नगर थापणा याद कराँ यूँ
वाह बीकाणा वाह !!

</poem>
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